ख्वाहिश ॥।

July 13, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों  रही ख्वाहिश एक लडके की ॥

हमेशा लडकी को कहाँ ॥

कभी चाँद कहाँ तो कभी गुलाब ॥

कभी जलता दिया तो कभी महकती फीजाए॥

चलती पवन तो कभी समुद्र का शाहील ॥

कभी धन लक्ष्मी तो कभी घर की नीव ॥

हर लवज से नबाजा पर क्यो खामोश हैं ॥

जब ख्वाहिश  हुई लड़के की ॥

जिन्दा ही मार दिया ॥

न चाँद ,गुलाब ,धन,नीव,

शाहील ,हवा ,दियाँ  नजर आया ॥

बस   एक ख्वाहिश  ॥

मन की बात ॥

रेनू गोयल ॥

 

पैसा की चाहत ॥

July 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

पैसे की चाहत ने ॥

मन तो मेरा कोमल था ॥

तेरी चाहत ने खुदगरज बना दिया  ॥

हर रिश्ता अपना सा था ॥

बेगाना बना दिया ॥

शान्ति,नीद अपनी थी ॥

पर बीमारी के सग जीना सीखा दिया।

अकेला हूँ  आज हर अहसास  से ॥

तेरी चाहत ने अहपाईज बना दिया ॥

 

रेनुका गोयल ॥

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