तिरंगा

August 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ना बिलखे भूख से ना कोई बच्चा नंगा रहे
ना हो आतंक के साये ना कहीं कोई दंगा रहे
मेरे भारत में चहुँ ओर बस प्रेम की गंगा बहे
“आदि” का हो अन्त तब उसका कफ़न तिरंगा रहे

जय हिन्द ! जय भारत !
ऋषभ जैन “आदि”

कश्मीर जरुरी है

August 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

पितरों के तर्पण को जैसे, थाली में खीर जरुरी है,

भारत माँ के श्रृंगार को वैसे, ही कश्मीर जरुरी है|

चमकी थी जो सत्तावन में, अब वो तलवार जरुरी है,

प्यार मोह्हबत बहुत हो गया, अब तो वार जरुरी है |

 

खूब बहा लिया लहू सीमा पर, भारत माँ के लालों ने,

जागो नींद से देशवासियों अब, इक हुंकार जरुरी है|

भेद ना पाए दुश्मन सीमा को, ऐसी पतवार जरुरी है,

और देश के गद्दारों को अब, दुत्कार जरुरी है |

 

ऋषभ जैन “आदि”

नारी

August 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी श्रापित अहिल्या सी पत्थर बन जाती है
कभी हरण होकर सीता सी बियोग पाती है
कभी भरी सभा में अपमानित की जाती है
कभी बेआबरू कर अस्मत लूटी जाती है

कभी बाबुल की पगड़ी के मान के खातिर
अपने सारे अरमानो की अर्थी सजाती है
कभी सावित्री सी पति के प्राण के खातिर
बिना समझे बिना बुझे यम से लड़ जाती है

कभी कर्त्तव्यविमूढ पन्ना धाय बन जाती है
कैसी भी हो बिपदा कैसा भी संकट हो
अपने परिवार की ढाल बन जाती है
ये नारी शक्ति है जो इतना कुछ सह जाती है

ऋषभ जैन “आदि”

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