Ritwik Verma
ममता
January 24, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
ये पेशानी पे जो लकीरें सी खिंची हुईं है,
आँखों के तले बेनूर रातें सी बिछीं हुईं हैं,
ये जो कांपते हाथों में काँच की चूड़ियाँ हैं,
ऐश-ओ-आराम से जो ताउम्र की दूरियाँ हैं,
ये जो मुस्कुराते होंठ हैं, दर्द को दबाए हुए,
सीने में तमन्नाओं की तुर्बतें छुपाए हुए,
ये जो साड़ियों के कोने कोने हैं फटे हुए,
सालों साल से बस तीन रंगों में बँटे हुए,
ये जो हाथों में गर्म दूध का इक गिलास है,
बूढ़ी आँखों की लौ में भी जो इक आस है,
ये जो सर पर मेरे कोमल सा एक हाथ है,
एक साया, एक दुआ जो हमेशा साथ है,
ये सारी दौलत है मेरी ज़िंदगी की, मेरी कमाई है,
इक ज़िंदगी बनाने को, इक ज़िंदगी ने लुटायी है,
मेरा अस्तित्व, मेरी पहचान, जो भी मेरी क्षमता है,
आधार उसका त्याग है, एक देवी की ममता है।
रिश्ते
January 20, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
रिश्ते ना गहरा सागर हैं
ना जल माटी की गागर हैं
वे तो बस बहता दरिया हैं
जीवन जीने का ज़रिया हैं
कुछ रिश्ते तुम्हारी क़िस्मत हैं,
कुछ रिश्ते तुम्हारी हसरत हैं,
पर हर रिश्ता रूख़ मोड़ता है,
कहीं, कभी, दम तोड़ता है।
कुछ रिश्तों ने तुम्हें राह दिया,
कुछ रिश्तों ने बस आह दिया,
कुछ रात से थे, पर सहर लगे,
कुछ अमृत थे, पर ज़हर लगे।
हर रिश्ते ने, भिगोया है,
कुछ सींचा है, कुछ बोया है,
न जाने कितने रिश्तों में,
भीगे, डूबे, हो किश्तों में।
पर जीवन के, अंतिम क्षण पर,
चंद बूँदों से, भीगे तन पर,
रिश्तों का रस छन जाएगा,
जब एक सूखा तन जाएगा।
वो क्या जिए ज़िन्दगी जो रिवाज से जिए
January 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
वो क्या जिए ज़िन्दगी जो रिवाज से जिए,
जो हम जिए, बेफ़िक्र-ओ-ख़ुशमिज़ाज से जिए.
अब तक न हो पाया तो कोई अफ़सोस नहीं,
जिसे जीना हो खुल के, वो बस आज से जिए.