तनहा

April 24, 2018 in ग़ज़ल

इश्क़ में हैं गुज़रे हम तेरे शहर से तनहा,
महब्बत के उजड़े हुए घर से तनहा!

हम वो हैं जो जीये जिंदगी भर से तनहा,
और महशर में भी जायेंगे दहर से तनहा!

तख़्लीक़े-शेर क्या बताऊ कितना गराँ हैं,
होना पडे हर महफ़िल-ओ-दर से तनहा!!

तुफानो-बर्क़ो-खारो-मौज़ो से निकलकर,
हम निकले गुलशनो-दश्तो-बहर से तनहा!

हम हैं वही जिसे कहता हैं ज़माना शायर,
दुनिया में है मक़बूल हम नामाबर से तनहा’!

तारिक़ अज़ीम ‘तनहा’

माँ बाप के नाम

April 23, 2018 in ग़ज़ल

पैदा कलम से कोई कहानी की जाए,
फिर जज़्बातों की तर्जुमानी की जाए!

खिलावे हैं खुद भूखे रहकर बच्चों को
माँ-बाप के नाम ये जिंदगानी की जाए!

ग़म से तो हाल ही में ही बरी हुए हम,
मुब्तिला होके बर्बाद जवानी की जाए!

सबको आदत हैं बे-वजह हंगामे की,
कभी हक़ की भी हक़बयानी की जाए।

‘तनहा’आईना के सामने लिखे ग़ज़ल,
ऐसे उसकी खुद की पासबानी की जाए!

तारिक़ अज़ीम ‘तनहा’

बिछडा जो फिर तुमसे

April 20, 2018 in ग़ज़ल

बिछड़ा जो फिर तुमसे तनहा ही रह गया,
ग़म-ए-हिज़्र मे अकेले रोता ही रह गया।

मुसलसल तसव्वुर में बहे आँसू भी खून के
शब् में तुझे याद करता, करता ही रह गया!

मैंने शाम ही से बुझा दिए हैं सब चराग,
शाम से दिल जला तो जलता ही रह गया।

था गांव में जब तलक प्यास ना थी मुझे
शहर जो आ गया हूँ तो प्यासा ही रह गया

कुछ ना रहा याद मुझे बस आका का घर रहा,
मेरी आँखों में बस मंज़रे-मदीना ही रह गया

सच का ये सिला हैं के फांसी मिली मुझे,
और वो झूठो का रहबर सच्चा ही रह गया

जमाना टेक्नोलॉजी से पहुँचा हैं चाँद तक,
‘तनहा’ हैं जो ग़ज़ल को कहता ही रह गया

तारिक़ अज़ीम ‘तनहा’
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साहब जी वतन आवाज़ दे रहा हैं।

April 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

साहब की हवाई सैर पर एक
मतला और एक शेर देखे।

कू-ए-वतन में उड़न तश्तरी मोड़िये ना,
साहब विदेश घूमने की जिद छोड़िये ना!
इंसाफ दिलाके आसिफा की रूह को फिर,
अनशन स्वाति मालिवाल का तोड़िए ना!

तारिक़ अज़ीम ‘तनहा’

जिंदगी और मौत

April 19, 2018 in ग़ज़ल

सोज़िशे-दयार से निकल जाना चाहता हूँ,
हयात से अदल में बदल जाना चाहता हूँ!

तन्हाई ए उफ़ुक़ पे मिजगां को साथ लेके,
मेहरो-माह के साथ चल जाना चाहता हूँ!

आतिशे-ए-गुज़रगाह-ए-चमन से हटकर,
खुनकी-ए-बहार में बदल जाना चाहता हूँ

मैं हूँ खुर्शीद-ए-पीरी जवानी के सफ़र में,
बहुत थक गया हूँ ढल जाना चाहता हूँ!

मैं हूँ ‘तनहा’ शिकस्ता तन-ओ-जहन से,
आशियाँ-ए-बाम पर टहल जाना चाहता हूँ

तारिक़ अज़ीम ‘तनहा’

मयस्सर कहाँ है।

April 17, 2018 in ग़ज़ल

मयस्सर कहाँ हैं सूरते-हमवार देखना,
तमन्ना हैं दिल की बस एक बार देखना!

किसी भी सूरत वो बख्शा ना जायेगा,
गर्दन पे चलेगी हैवान के तलवार देखना!

सज़ा ए मौत को जिनकी मुत्ताहिद हुए हैं हम
आ जायेगी उनको बचाने सरकार देखना

करो हो फ़क़त तुम गुलो की तारीफ बस,
कभी तो गुलशन के भी तुम खार देखना।

केमनी टी स्टाल पर यही करते है हम रोज़,
चाय पीते रहना औ र तेरा इंतज़ार देखना।

अपनी खुद्दारी ‘तनहा’ तू छोड़ेगा तो फिर,
इसे आ जायेगा खरीदने बाज़ार देखना!

तारिक़ अज़ीम ‘तनहा’

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