मेरा गाँव.

July 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सफ़र मे अपना गाँव भूल गये है,
मोहब्बत वाली छाव भूल गये है

महक मिट्टी कि बारिश वाली
वो खुशियाँ शिफारिश वाली
हम उनसे दुर इतने क्यो है अब
इनसे मजबुर इतने क्यु है अब
कि खुद से खुद का अलगाव भुल गये है,
सफर मे अपना••••••••••••••••••

सहर, गाँव हमारा दिल से जाता नही है,
जैसे महबुब को कोई भुल पाता नही है
अब तो त्योहारो का सहारा बचा है केवल
बिन इसक अब कोई घर जाता नही है

बडो के आशिषो का फैलाव भुल गये है
सफर मे अपना••••••••••••

काश्मीर रुला दिया तुमने.

July 18, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये गज़ल मैने आस्तिन के सापो के लिये लिखी है जो कश्मीर मे है,अगर सही लिखा हो तो आप सबकी प्रतिक्रिया चाहता हु,
**********************************
अपनो को अनजान बना बेैठे हो,
जन्नत को शमशान बना बेठे हो
कलम वाले हाथो मे तलवार है,
तुम खुद को शैतान बना बेैठे हो
हमारा राम तुम्हारा खुदा हेेै,ही
खुद को क्यु भगवान बना बेैठे हो,
कई आँगन मे अब सुनापन है,
जीवन सबकी विरान बना बैठे हो,
विशाल सिंह (बागी)
9935676685

New Report

Close