आज़ादी के मायने

September 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या सोचके निकले थे, और कहाँ निकल गये हैं
७२ साल में आज़ादी के, मायने ही बदल गये हैं

आज मारपीट, दहशत और बलात्कार आज़ादी है
पथराव, लूटपाट, आगजनी, भ्रष्टाचार आज़ादी है
आरक्षण और अनुदान मूल अधिकार बन गये है
आज वासुदेव कुटुम्बकम के मायने बदल गये हैं

आज अलगाव, टकराव और भेदभाव आज़ादी है
संकीर्णता, असहिष्णुता, और बदलाव आज़ादी है
लालची, निठल्ले और उपद्रवीयों का बोलबाला है
सम्मान, संवेदना और सद्भाव का मुंह काला है

सड़क पे निजी और धार्मिक कार्यक्रम आज़ादी है
आज भीड़ द्वारा संदिग्ध की मारपीट आज़ादी है
सर्वजन हिताय पर निजी स्वार्थ हावी हो गये हैं
जिओ और जीने दो, जाने कहाँ दफन हो गये हैं

आज शराब के नशे में वाहन दौड़ाना आज़ादी है
मल मूत्र के लिये कहीं भी बैठ जाना आज़ादी है
संवाद ना कर विवाद बनाना, आदत बन गये है
आज़ादी आज, ध्रष्टता और मनमर्जी बन गये हैं

क्या सोच कर चले थे, और कहाँ निकल गये हैं
‘योगी’ आज आज़ादी के, मायने ही बदल गये हैं

मुलाकात (हास्य व्यंग)

September 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल कालेज के एक पुराने मित्र से मुलाकात हो गयी
देख कर भी नहीं पहचाना, कुछ अजीब बात हो गयी
मैं बोला, क्यों भाई, पुराने यारों से याराना तोड़ लिया
कालेज के मोटू से आज, अपना मुंह कैसे मोड लिया

मोटापे के जंगल में मंगल, परिवर्तन कैसे कर लिया
अपना चोला, मेरे मोटू भाई, इतना कैसे बदल लिया
मैं क्या अपना कोई दोस्त, तुझे नहीं पहचान सकता
८० को देख १२० किलो वाला, कोई नहीं मान सकता

कीटो डाइट, नेचुरोपेथी, या बेरियाटिक सर्जरी करवाई
लाइपोसक्सन या फिर किसी हकीम की गोलीयाँ खाई
४४ की कमर ३६ लग रही है, आखिर माजरा क्या है
कुछ खाता है या भूखा रहता है, इसका राज क्या है

अपनी सुबह दो ग्लास गुनगुने पानी से शुरु करता हूँ
और सूर्यास्त के बाद खानपान पर कोताही बरतता हूँ
अब शुगर, लिकर और डिनर से, मीलों दूर भागता हूँ
बाकी सब कुछ लेकिन थोड़ा २, और धीरे २ खाता हूँ

जल्दी सोना, जल्दी उठना, और नियमित सैर करना
‘योगी’ आजकल मैं इसी दिनचर्या का पालन करता हूँ

बढ़ती उम्र

September 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

बढ़ती उम्र का मतलब ये नहीं कि इंसान जीना छोड़ दे
सारे काम बन्द कर मौत का इंतज़ार करना शुरू कर दे
सेवानिवृति एक पड़ाव है जहां थोड़ा कुछ बदल जाता है
थोड़ा पीछे छूट जाता है, और थोड़ा नया मिल जाता है

बढ़ती उम्र डरने या नकारात्मक सोचने का नाम नहीं है
और जीवन यात्रा में सेवानिवृति, रुकने का नाम नहीं है
सेवानिवृत होने का मतलब जीने पर पूर्ण विराम नहीं है
ये तो बस एक कोमा है, जीवन पर कोई लगाम नहीं है

सोच अगर तंग रहे तो, ज़िन्दगी एक जंग हो जाती है
बढ़ती उम्र में दर्द और बेचैनी जीने का अंग हो जाती है
नियमित व्यायाम और संतुलित आहार, सेहत संजोयेंगे
जुबां पे लगाम और सम व्यवहार, सभी का मन मोहेंगे

बढ़ती उम्र छिपने छुपाने या अलगाव का कारण नहीं है
ये उधारण बनकर, नई पीढ़ी को सीख देने का नाम है
इस दुनिया में वृद्ध होना, सबके नसीब में नहीं होता
“योगी” बुढ़ापा, ऐसी खुशनसीबी के, उत्सव का नाम है

बारिश को हद में रहना होगा

September 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई बारिश से कहदे, उसको हद में रहना होगा
गर बरसना है तो हमारी शर्तों पर बरसना होगा

बेलगाम, बेखौफ, बेवक्त कहीं भी यूं बरस पड़ना
और झमाझम बरस के सड़कों पर हंगामा करना
ये माना कि हर तरफ पीने के पानी की कमी है
लेकिन जीव पर अत्याचार, बारिश की बेरहमी है
यहाँ पर बरसने को प्रशासन की मंजूरी जरूरी है
व्यवस्था से बगावत करना तो बर्दाश्त नहीं होगा

यहाँ सड़कों में गढ़ढ़े और खुले मेनहोल आम है
गटर और गंदे नाले अवरुद्ध, जर्जर मकान हैं
मजबूरों के घर, हल्की बारिश से ढह सकते हैं
खुले आसमां के नीचे आज भी करोड़ों रहते हैं
प्रशासन सोया हुआ है, उसको जगाना निषेध है
बारिश की ऐसी मनमानी तो बर्दाश्त नहीं होगी

स्थानीय जरूरतों का ध्यान रखके बरसना होगा
दिन में निषेध है रात तक सीमित रखना होगा
आम जीवन प्रभावित ना हो, इसका खयाल रहे
पुराने पुल और बांधों की हिफाज़त करना होगा
सड़क पे घुटनों तक पानी का ठहरना निषेध है
‘योगी’ बारिश का उत्पात तो बर्दाश्त नहीं होगा

हँसकर जीना दस्तूर है ज़िंदगी का

October 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हँसकर जीना दस्तूर है ज़िंदगी का
एक यही किस्सा मशहूर है ज़िंदगी का
बीते हुए पल कभी लौट कर नहीं आते
यही सबसे बड़ा कसूर है ज़िंदगी का
जिंदगी के हर पल को ख़ुशी से बिताओ
रोने का समय कहां, सिर्फ मुस्कुराओ
चाहे ये दुनिया कहे पागल आवारा
याद रहे, जिंदगी ना मिलेगी दोबारा

ये दोस्ती

August 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी दोस्ती पर लिखी ये कविता, दोस्तों को समर्पित

ये दोस्ती

अल्हड़पन के लंगोटिये, ५० साल से साथ चल रहे हैं
दोस्ती की किताब में रोज़, नये अध्याय लिख रहे हैं

हमारी दोस्ती जगह, जाति, धर्म, वंश से अनजान है
विद्वानों की फौज का जीवन में अहम् योगदान है
सभी एक दूसरे की शान है, आधार जैसी पहचान है
सब दोस्त जब तक साथ है, हर मुश्किल आसान है

दो हज़ार का पता नहीं, कभी दो रूपए को लड़ते थे
खाई में धकेल कर, बचाने भी खुद ही कूद पड़ते थे
सबके सामने पर्दा, अकेले में बातों से नंगा करते थे
दिन भर टांग खींचते थे, रात भर साथ २ पढ़ते थे

वक़्त के साथ सबकी जिंदगी नये सिरे में ढल गयी
समय सिमट गया, जिम्मेदारी और दूरीयाँ बढ़ गयी
आधुनिक संचार सेवाओं ने इसमें कमाल कर दिया
दूरीयों को ख़त्म करके, दोस्ती में धमाल कर दिया

एक दूजे की स्वतंत्रता, निजता, जरूरतों का ध्यान
ताक़त को उजागर और कमजोरी ढकना सीख गये
समय और भाषा पे संयम, तू से तुम पर आ गये
“योगी” दोस्ती वही है, दोस्ती के अंदाज़ बदल गये

हे गोविन्द, तू भी एक सखा है, ये भूल मत जाना
हम दोस्तों का साथ कल भी ऐसे ही बनाये रखना

निराशा बोल रही है

August 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

माफ़ करना, ये मैं नहीं, मेरी निराशा बोल रही है
नासमझ, मेरी सहनशीलता को, फिर तोल रही है

सुकून गायब है, ज़िंदगी उलझी २ सी लग रही है
कोशिशों के बाद भी, कोशिश, बेअसर लग रही है
मंजिल तक पहुँचने की कोई राह नज़र नहीं आती
जूनून दिल में बरकरार है, निराशा घर कर रही है

सीधी सच्ची मौलिक बात, इन्हें समझ नहीं आती
मेरी कोई कोशिश, किसी को भी, नज़र नहीं आती
मेरी कोशिश में ये लोग अपनी पसंद क्यूं ढूंढते हैं
उनकी पसंद से मेरी कोशिश मेल क्यों नहीं खाती

मुझे आखिर कब तक, खुदको साबित करना होगा
ये भारी पड़ता इन्तजार, ना जाने कब ख़त्म होगा
इन्सान हूँ मैं भी अपने काम की पहचान चाहता हूँ
खुद से इश्क करता हूँ मैं भी एक मुकाम चाहता हूँ

आज भीड़ में खड़ा हूँ तुमको नज़र नहीं आ रहा हूँ
कौन जाने कल तुम्हें भीड़ में खडा होना पड़ जाये
आशा और जूनून के आगे निराशा नहीं रुका करती
कहे “योगी” कौन जाने, ये मौसम कब बदल जाये

आवाज को नहीं, अपने अलफ़ाज़ को ले जाओ बुलंदी पर

July 26, 2018 in शेर-ओ-शायरी

आवाज को नहीं, अपने अलफ़ाज़ को ले जाओ बुलंदी पर
बादलों की गरज नहीं, बारिश की बौछार फूल खिलाती है

जलने और जलाने का बस इतना सा फलसफा है

July 26, 2018 in शेर-ओ-शायरी

जलने और जलाने का बस इतना सा फलसफा है
फिक्र में होते है तो खुद जलते हैं
बेफ़िक्र होते हैं तो दुनिया जलती है

मुझ पर दोस्तों का प्यार

July 26, 2018 in शेर-ओ-शायरी

मुझ पर दोस्तों का प्यार, यूँ ही उधार रहने दो
बड़ा हसीन है ये कर्ज, मुझे कर्जदार रहने दो

ये कमबख्त दोस्त, उम्र की चादर खींच कर उतार देते हैं

July 26, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये कमबख्त दोस्त, उम्र की चादर खींच कर उतार देते हैं
ये कमबख्त दोस्त ही है, जो कभी बूढा नहीं होने देते हैं
दोस्तों से रिश्ता रखा करो जनाब, तबीयत मस्त रहेगी
ये वो हकीम हैं जो अल्फाज से इलाज कर दिया करते हैं

अपनी छाया में भगवन, बिठा ले मुझे

July 21, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी छाया में भगवन, बिठा ले मुझे (२)
मैं हूँ तेरा तू अपना बना ले मुझे (२)

अब मुझे गम का गम, ना ख़ुशी की ख़ुशी (२)
है अंधेरा भी मेरे लिये रोशनी
मैं जीयूं जब तलक (२), आजमा ले मुझे (२)
मैं हूँ तेरा तू अपना बना ले मुझे
अपनी छाया में भगवन, बिठा ले मुझे
मैं हूँ तेरा तू अपना बना ले मुझे

देखकर मैं किसी की ख़ुशी ना जलूं (२)
राह इंसानियत की हमेशा चलूँ
भूल जाऊं तो (२), जग से उठा ले मुझे (२)
मैं हूँ तेरा तू अपना बना ले मुझे
अपनी छाया में भगवन, बिठा ले मुझे
मैं हूँ तेरा तू अपना बना ले मुझे

किसी ने पूछा, दिल की खूबी क्या है

July 21, 2018 in शेर-ओ-शायरी

किसी ने पूछा, दिल की खूबी क्या है,
हमने कहा, हजारो ख्वाहिशों के नीचे दबकर भी धड़कता है

मुझे मंजूर नहीं है

July 21, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझे मंजूर नहीं है
१६ जुलाई २०१८

जग में अपने अस्तित्व को लेकर मैं हैरान हूँ
इस जीवन का उद्देश्य क्या है, मैं अनजान हूँ
आखिर मेरा जन्म हुआ क्यों है मैं परेशान हूँ
तेरा यूं खामोश बने रहना मुझे मंजूर नहीं है

तेरी मर्जी तेरी इच्छा, तूने चाहा, जन्म दिया
तेरी मनमानी, जब तू चाहेगा उठवा भी लेगा
ये जिंदगी तेरी चाहत है, पर मेरी मजबूरी है
निरुद्देश्य ज़िंदगी बिताना, मुझे मंजूर नहीं है

तुझसे साक्षात्कार को हम भी बहुत तरसते हैं
लेकिन मेरे नयन, मेरी पहचान को बरसते हैं
आखिर इस अंधियारे में दीप कब जलाओगे
तेरा यूं आजमाते रहना, मुझको मंजूर नहीं है

मेरा मैं मुझे धिक्कारता है, जवाब मांगता है
मुझसे मेरे कर्मों का, सारा हिसाब मांगता है
एक ज़िंदगी में कई जीने की तमन्ना नहीं है
पर ये अधूरी सी ज़िंदगी, मुझे मंजूर नहीं है

जरूरी है ये जानना, जीवन का उद्देश्य क्या है
अपने निशान छोड़े बिना, मरना मंजूर नहीं है

सूरज

July 21, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

आजतक सूरज कितने अच्छे बुरे अनदेखे पलों का साक्षी है
पर उसकी चाल, उसके कर्म पर कभी कोई फर्क नहीं आया
हर सुबह उसी ऊर्जा और, उसी शक्ति के साथ निकलता है
बिना किसी भेदभाव, बिना अपेक्षा के प्रतिदिन निकलता है

किसी चीज को ठोकर मारना हमारी संस्कृति नहीं है

July 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी चीज को ठोकर मारना हमारी संस्कृति नहीं है
यही वजह है हम फुटबॉल में विश्व चैंपियन नहीं है
लेकिन हम एक दूसरे की टाँग खींचने में माहिर है
इसीलिए हम कबड्डी में विश्व चैम्पियन बन गए हैं

रिहा हो गई बाइज्जत

July 18, 2018 in शेर-ओ-शायरी

रिहा हो गई बाइज्जत वो किसी कत्ल के इल्जाम से
शौख निगाहों को अदालतों ने हथियार नहीं माना

औरत

July 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

औरत की बेफिक्र चाल, धक् सी लगती है किसी को
औरत की हँसी, बेपरवाह सी लगती है किसी को
औरत का नाचना, बेशर्म होना सा लगता है किसी को
औरत का बेरोक टोक यहाँ वहाँ आना जाना, स्वछन्द सा लगता है किसी को
औरत का प्रेम करना, निर्लज्ज होना सा लगता है किसी को
औरत का सवाल करना, हुकूमत के खिलाफ सा लगता है किसी को

औरत, तू समझती है न यह जाल, लेकिन, औरत,

तू चल अपनी चाल, कि नदी भी बहने लगे, तेरे साथ साथ
तू ठठाकर हँस, कि बच्चे भी खिलखिलाने लगें, तेरे साथ साथ
तू नाच, कि पेड़ भी झूमने लगें, तेरे साथ साथ
तू नाप धरती का कोना कोना, कि दुनिया का नक्शा उतर आए, तेरी हथेली पर
तू कर प्रेम, कि अब लोग प्रेम करना भूलते जा रहे हैं
तू कर हर वो सवाल, जो तेरी आत्मा से बाहर निकलने को, धक्का मार रहा हो
तू उठा कलम, और कर हस्ताक्षर, अपने चरित्र प्रमाण पत्र पर,
कि तेरे चरित्र प्रमाण पत्र पर, अब किसी और के हस्ताक्षर, अच्छे नहीं लगते

पूर्ण से सम्पूर्ण की ओर

July 17, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल जो सम्पूर्ण था आज पूर्ण (Complete) रह गया है
और आज का सम्पूर्ण (Perfect), कल पूर्ण रह जायेगा

माँ बाप अपने विवेक अनुसार बच्चों को तैयार करते हैं
वास्तुकार अपने कौशल से, वस्तु का निर्माण करता है
यहाँ दोनों के द्वारा तैयार कृति, उनके लिये सम्पूर्ण है
लेकिन वही कृति, दूसरे रचनाकारों की नज़र में पूर्ण है

इंसान हमेशा अपने कौशल का, विकास करता रहता है
और उसी विकास से, पूर्ण से सम्पूर्ण की ओर बढ़ता है
कोई तैयार चीज, जहाँ और सुधार संभव हो, वो पूर्ण है
लेकिन, जिसमें और बेहतरी असम्भव हो, वो सम्पूर्ण है

किसी इंसान या चीज का पूर्ण होना तो समझ आता है
लेकिन क्या उसका सम्पूर्ण होना मुमकिन हो सकता है
क्या सम्पूर्ण महज किताबी, और खोखला शब्द नहीं है
क्योंकि सम्पूर्ण की Finish Line या अंत नहीं होता है

“योगी” ये जीवन पूर्ण से सम्पूर्ण की ओर का सफ़र है
यहाँ असली मुद्दा, इंसान की सोच और उसकी नज़र है

आफत की बारिश

July 13, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

इन्द्र देव इस बार कुछ, ज्यादा ही तबाही कर रहे हैं
क्रोधित किसी अप्सरा ने किया, हम पर बरस रहे हैं
कहीं पे सूखा पड़ा हुआ है, कहीं पे कहर बरपा रहे हैं
अपनी हरकतों से ना जाने क्यों बाज नहीं आ रहे हैं

सीमित जगह में मूसलाधार बारिश, ये कैसा न्याय है
और कहीं बस आँखें दिखाकर भाग जाना, अन्याय है
बादल फट रहे है कहीं भूस्खलन कहीं बाढ़ आ रही है
कहीं आफत की बारिश से, लोगों की जान जा रही है

यातायात बंद, दुकानें बंद, ये कैसा आतंक मचाया है
व्यवस्था पंगु, लोग घरों में क़ैद, क्या हाल बनाया है
रेल, रास्ते, राशन, बिजली, सब पानी में डूब गये हैं
पानी के तेज बहाव से, शहरों के नक्शे बदल गये हैं

जाने बारिश का दिमाग क्यों इतना खराब हो गया है
जो अपने आवेश में सबकुछ, ख़त्म करने पर अड़ी है
बारिश की आहट से वनस्पति के चेहरे खिल जाते हैं
पर आज उसे भी अपना, अस्तित्व बचाने की पड़ी है

शायद इंद्र को फिर अपने अस्तित्व का डर सताया है
कोई बात नहीं, हमने एक बार फिर कान्हा बुलाया है

खटखटाते रहिये दरवाजा

July 12, 2018 in शेर-ओ-शायरी

खटखटाते रहिये दरवाजा एक दूसरे का
मुलाकातें ना सही, आहटें आती रहनी चाहिये

बरबादी का शौक है

July 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

आतंकी जवानों को रोज गोली मार रहे हैं
जनता द्वारा चुने नेता देश को खा रहे हैं
ढोंगी बिना वजह ही, मुद्दे खड़े कर रहे हैं
स्वार्थ सिद्धि को खुदा को रिश्वत दे रहे हैं
आरक्षण के भोग इतने आकर्षक हो चुके हैं
सवर्ण भी ‘मैं पिछड़ा’ का शोर कर रहे हैं

आज हम एक ऐसे देश में रहते हैं जहाँ
पेट खाली है, योग करवाया जा रहा है
जेब खाली, खाता खुलवाया जा रहा है
घर नहीं, शौचालय बनवाया जा रहा है
आटा महंगा और डाटा सस्ता हो रहा है
दिमाग गन्दा, भारत स्वच्छ बन रहा है

जहाँ डॉक्टर स्वास्थ्य को तबाह करते हैं
जहाँ वकील न्याय को तबाह करते हैं
शिक्षण संस्थान शिक्षा को तबाह करते हैं
जहाँ प्रेस जानकारी को तबाह करती हैं
जहाँ धर्मगुरु आचरण को तबाह करते हैं
और बैंक अर्थव्यवस्था को तबाह करते हैं

जहाँ असावधानी से ही लोग मरते नहीं हैं
असावधानी से, पैदा भी करोड़ों में होते हैं
11 लोगों को “ॐ नम: शिवाय” लिख कर
२४ घंटे में चमत्कार की उम्मीद करते हैं
ढोंगी, भोगी, जुमलेबाजों के देश में रहते हैं
“योगी” यहाँ लोगों को बरबादी का शौक है

व्यव्हारिकता के साइड इफेक्ट्स

July 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

व्यवहारिक” शब्द सुनते ही मीठा सा भान होता है
व्यवहारिक इंसान का समाज में बड़ा मान होता है
इन्हें सामाजिक परम्पराओं का खासा ज्ञान होता है
ऐसे इंसान को अपने मान पर बड़ा गुमान होता है
समाज में मान बनाये रखने पर पूरा ध्यान होता है
लेकिन, व्यवहारिकता के साइड इफेक्ट्स से अनजान होता है

व्यवहारिक इंसान असुविधा की नहीं सोचता है
बिना बताये अस्पताल में हाल पूछने चला आता है
अस्पताल में लाख वर्जित हो, घर का खाना लाता है
यात्रा से ऐन वक़्त पहले गुड बाय करने चला आता है
आग्रह कर हाथ में एक और पैकेट थमा जाता है
लेकिन, व्यवहारिकता के साइड इफेक्ट्स से अनजान होता है

व्यवहार के नाम पर लेन देन का बोझ बढाता है
काम में हाथ बंटाने के नाम पर रायता फैलाता है
बिना बताये, बेवक्त दूसरे के घर पहुँच जाता है
दूसरे की निजता समझे बिना कहीं भी घुस जाता है
७ बजे की पार्टी, उसमें साढ़े नौ पर एंट्री मारता है
लेकिन, व्यवहारिकता के साइड इफेक्ट्स से अनजान होता है

व्यवहारिक इंसान अन्दर से थोडा सा क्रैक होता है
दूसरा व्यवहारिक ना हो तो उसका हार्ट ब्रेक होता है
रोजाना के जीवन में ऐसे बहुत से अवसर आते है
जब एक का व्यवहार दूसरे पर भारी पड़ जाता है
“योगी” जहाँ पर एक पक्ष तो व्यवहार निभाता है
लेकिन दूसरा कभी २ बेवजह बेचारा बन जाता है
व्यवहारिक इन्सान व्यवहारिकता के साइड इफेक्ट्स से अनजान होता है

कुछ अपने बारे में

July 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वछन्द प्रकृति का इन्सान हूं लेकिन नहीं चाहता मेरे कारण कोई रोये
मुझे अपने ढंग से जीना पसंद है, बंधनों में बंधने की मेरी आदत नहीं

थोडा मुंहफट हूँ, सोच समझ कर जवाब कम, प्रतिक्रिया ज्यादा देता हूँ
कोई मेरी निजता में झांके, मेरे भीतर टटोले, ये मुझे कतई बर्दाश्त नहीं

सदियों से प्रचलित सामाजिक परम्पराओं का अनुकरण मुझसे नहीं होता
परिवर्तन में अगाध विश्वास है मेरा, आँखें बंद रखना मेरी फितरत नहीं

अपने, रिश्तेदार और दोस्तों के बीच, अनचाहा रहूँ ऐसी मेरी चाहत नहीं
नियम और शर्तों के पहरों संग सम्बंधों को निभाने की मुझे आदत नहीं

सभी की निजता का सम्मान करता हूँ, बोझ बनना मेरी फितरत नहीं
घर से जरूरत में ही निकलता हूँ, बेवजह भीड़ बनना मेरी चाहत नहीं

भिन्न विचारधारा थोपने वाले लोगों से अपना रास्ता बहुत दूर रखता हूँ
लेकिन इसके वावजूद भी, कोई मुझे नश्तर चुभोये, कतई बर्दाश्त नहीं

दौलत से अमीर ना सही, परायी ख़ुशी देख ललचाना मेरी फितरत नही
मेरी सारी उम्मीदें अपने आपसे हैं, किसी और से मेरी कोई चाहत नही

जीवन के पथ पर औरत और मर्द दोनों के समान हकों का समर्थक हूँ
परिवार में बेटों को बेटियों से ज्यादा अहमियत मिले, मेरी आदत नहीं

कम मिलना जुलना, अपने आप में रहना, मेरी फितरत है अहंकार नहीं
“योगी” नासमझ जमाना ये समझता है जैसे मुझे किसीसे सरोकार नहीं

बरगद आजकल

July 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अटल, अडिग, विशाल बूढ़े पेड़ को देख कर लगता है
जैसे कोई ज्ञानी ध्यानी बाबा, आसन जमाकर बैठा है
पेड़ की कुछ झूलती जटायें जो जमीन से जुड़ गयी हैं
ऐसा लगता है जैसे कोई दाढ़ी जमीन में घुस गयी हैं

सन्तान प्राप्ति के लिये, हिन्दुओं का पूजनीय बरगद
स्वच्छ वायु, छाँव, चिड़ियों का बसेरा, थके को डेरा
कट कर भी कितना काम आता, कितनी देह जलाता
कभी किसी से कुछ नहीं लेता, सिर्फ देना ही जानता

बरगद जो मिट्टी से जुड़कर, अपना विस्तार करता है
इसलिए ये पेड सबसे स्थिर और शक्तिशाली होता है
आज के क्रूर भौतिकवाद में, बरगद मिटते जा रहे हैं
उनकी जगह इन्सान खुद ही, बरगद बनते जा रहे है

आजकल कदम कदम पर फर्जी बरगदों की भरमार है
नये पौधे पनपें तो कैसे, यहाँ तो जगह ही बीमार है
सच्चे बरगद सिर्फ देते हैं, हजारों का सहारा बनते हैं
फर्जी बरगद सिर्फ लेते हैं, हजारों पर बोझ बनते हैं

आज विस्तारवाद का युग है, परिवारवाद का युग है
आज साम्राज्यवाद का युग है, बरगदवाद का युग है
“योगी” सही ही कहा है, जहाँ बरगदों की भरमार हो
वहां पौधे तो क्या, झाड़ी और घास भी नहीं पनपते

बुढापे का मज़ा लीजिये

July 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन की आपाधापी में, चैन का एहसास कीजिये
बेवजह की चिंता छोड़कर, बुढापे का मज़ा लीजिये

शरीर पर झुर्री, बालों में चांदी, है तो होने दीजिये
चलने को हाथ में छड़ी आ गयी, तो आने दीजिये
गपशप कभी संगीत कभी, चाय पर चर्चा कीजिये
कभी ताश, कभी फिल्म, बुढापे का मज़ा लीजिये

कोई परेशानी हो तो दोस्तों या परिवार में कहिये
अपेक्षा करो ना उपेक्षा, स्वयं पर भरोसा कीजिये
शरीर ने खूब काम किया है थोडा आराम दीजिये
कब तक यूं दौड़ते रहेंगे, बुढापे का मज़ा लीजिये

ना बॉस की खिट पिट, और ना फाइलों का मेला
ना दफ्तर का झंझट और ना मीटींगों का झमेला
बुढ़ापे में वक़्त गुजारना, मुश्किल नहीं मजेदार है
गूगल एवं अलेक्सा हैं ना, जब चाहें बातें कीजिये

मरणोपरांत सारा अनुभव, क्या साथ लेकर जायेंगे
बच्चों को सिखाइये, उनके साथ चिट चैट कीजिये
अच्छे बुरे सारे अनुभव, नयी पीढ़ी में बाँट दीजिये
‘योगी’ कठिन परिश्रम बाद बुढापे का मज़ा लीजिये

ए बादल इतना बरस

July 3, 2018 in शेर-ओ-शायरी

ए बादल इतना बरस कि सारी नफरतें धुल जांयें
इंसानियत तरस गई है, मोहब्बत के सैलाब को

New Report

Close