Pradushan
आज मानव खुद को ही,
विनाश की ओर है धकेल रहा ,
लालच और फरेब का,
चारों तरफ जाल है बुन रहा ,
खुद को सबसे आगे,
रखने की होर में ,
दूसरे को पैरों तले है रौद रहा ,
नतीजा प्रदूषण की चपेट में,
सारा विश्व है घिर रहा ,
जिसके कारण मानव का ,
दम है घुट रहा,
कितने लोग हर साल
प्रदूषण की चपेट में है मर रहे,
बेचारी हवा अपने पुराने दिन
को याद कर है रो रही ,
कब आएंगे वह प्यारे दिन
और रातें वह सपने है सजा रही,
कब जागेगा इंसान ?
कब होगी उसकी आत्मग्लानि?
Wah
Thanks
सही बात
Thanks
Nice
Thanks
वाह
Thanks
Nice