अच्छा लगा

आज धरा से मिला आकाश ,तो अच्छा लगा।
नन्हीं – नन्हीं बूंदों से हरी हो गई घास ,तो अच्छा लगा।
तल्ख़ हो जाए ,कुछ बातों से जब दिल,
कोई दे जाए बातों की मिठास , तो अच्छा लगा।
यूं ही तो कोई किसी की परवाह नहीं करता,
कोई दिलाए “ख़ास” का एहसास, तो अच्छा लगा ।

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Responses

  1. आपकी कविता में साहित्यिक स्तरता का चरम बिंदु है। संतुलित पंक्तियाँ, सुरम्य काव्य, इस प्रतिभा को सैल्यूट

    1. इस सुन्दर समीक्षा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका सतीश जी 🙏 आपका स्नेह और प्रेरणा मिलती रहे। बहुत बहुत आभार।

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