अन्न- दाता
आज हमारा जीवन रक्षक, अन्न- दाता कर्म भूमि छोड़ कर
दर – बदर सड़कों पर,
संघर्ष करता,
गरीब हर साल और गरीब होता जाता,
सदियों से हक के लिए लड़ता ,
हर बार ठगा जाता ,
आत्म हत्या का विकल्प चुनता,
कितना बेबस,सुनता कौन,
राजनीति की भेंट चढता आया,
वोट बैंक दिग्भ्रमित करता ,
अब तो उम्मीद भी हारने लगा,
भटके कभी इस छोर कभी उस छोर
कोई रखता नही याद इसका बलिदान
दुआ करो,
कही इसकी नई पीढ़ी भूल ना जाए खेत खलिहान ।
बहुत ही असरदार एवं यथार्थपरक अभिव्यक्ति
बहुत धन्यवाद
बहुत खूब, सुन्दर अभिव्यक्ति
शुक्रिया
अतिसुन्दर
धन्यवाद
भूमिपुत्र, कृषक के सम्मान में बहुत सुन्दर प्रस्तुति और उनकी व्यथा का यथार्थ चित्रण
शुक्रिया
बहुत खूब
शुक्रिया
बहुत ही यथार्थ परक, बेहतरीन रचना
धन्यवाद