राहें

जब राहें कंटकित व वीरान हो, और कोई ना तेरे साथ हो, तब तुम व्यथित होना नहीं, हिम्मत मन की खोना नहीं, जब होता कोई…

एक पहेली

तुम एक पहेली सी लगती हो समझ ही नही आती हो जब मैं खुश होती हूँ तुम दूर खड़ी मुस्कुराती हो जब मैं पीड़ा में…

भोर

भोर होती है हर रोज बहुल के लिए आशा की एक किरण लेकर नऐ विचार नई ख्वाहिशें नई चाह नई भूख जो होती है पद-प्रतिष्ठा…

रंग

हे रंगरेज़ बावरी मत समझ लेना बात बार-बार दोहरांयू तो यह अदा है इज़हार की मुकम्मल नही हूँ, हूँ कुछ अधूरी सी रंग दोगे जो…

पतझर

आंखे तेरी सब कह देती है हाले दिल बयां कर जाती है जो कह नही पाते हो जुबान से वही दर्द वो चुपके से बता…

सोच समझ के बोल

सोच समझ के बोल रे बंदिया सोच समझ के बोल जो तु बोले, तेरा पीछा ना छोड़े मांगे हर अल्फाज़ अपना हिसाब मान-अपमान दिलवाते, दिखलाये…

जिंदगी

यह जो जिंदगी इतना सबक सिखाऐ जा रही हो मुझे अनुभवों का पुलिंदा बनाऐ जा रही हो जिंदगी है चार दिन की क्यों इतनी मगजमारी…

लोहड़ी का त्यौहार

आजो सारे, आजो सारे ,रल मिल लोहड़ी पाइऐ, दुल्ला भट्टी दा गीत गा,विहड़े विच अलाव जलाइऐ, मूँगफली,गच्चक,रेवड़ी खाइऐ ते सबनू खवाइऐ, मक्की दी रोटी, सरसों…

मृग मरीचिका

वो छत क्या अचानक गिर गई गिरी नही ऐसा कहो गिराई गई नींव संवेदनहीनता की रेत लालच की ईंट भ्रष्टाचार की सीमेंट बेईमानी का माया…

2021

उठती रहेगी इक लहर सागर से निरंतर जो समाहित कर लेगी हर पीड़ा जो दी बीते वर्ष ने हर बार होगी इक नईं हिलोर जो…

2021 शुभ शगुन

आ रहा है दौ हजार इक्कीस का नव वर्ष करते हैं हम दिल से अभिनंदन बार-बार इक्कीस अंक होता है प्यारा सा शगुन आना तुम…

वक़्त की ताकत

बीत जाएगा यह वक़्त भी वक़्त कभी थमता नही अगर थमता तो वक़्त कहलाता नही एक दिन यह वक़्त इतिहास बन जाएगा इतिहास दोहराया जाता…

कृष्णा भजन

कृष्णा जी की प्यारी ,राधा न्यारी बसो मोरे मन मन्दिर बिहारी,संग वृषभानु दुलारी तुम बिन कोई ना ठौर हमारी, जाऊँ बलिहारी पल पल याद करूँ…

राधा-श्याम

प्रिये, यह आज तुमने कैसी चाय है बनाई कौन सी लजीज़ वस्तु है मिलाई घूंट-घूंट पीते अजब रूहानी मस्ती है छाई इससे पहले तो कभी…

दोधारी तलवार

क्यों दोधारी तलवार से हैं लोग… क्यों सच को स्वीकार नहीं कर पाते हम लोग…. जानते हैं कुछ साथ नहीं कुछ जाना फिर भी क्यों…

अपना हक

क्यों दिल्ली आज हिल रही क्यों इतना डर रही वो ह़क लेने आ रहे जान की बाजी लगा रहे राह में कितने रोड़े अटकाओगे अब…

किन्नर

प्यार दूर की बात सम्मान कभी सपने में भी ना सोचूं तुम तो देखने से भी कतराए देख कर नज़र फेर ली फिर कहते हो…

अश्क मेरे

अश्क जो बहे नयनों से लुढ़के गालों पे मेरे किसी ने ही देखे अनदेखे ही हुऐ अश्क जो अटके गले में गटके हर सांस में…

निर्भया

कभी दिशा, कभी निर्भया,कभी मनीषा ,नन्ही बच्ची कोई, बस नाम अलग-अलग,कहानी सबकी एक, हर घड़ी डर का साया, ना जाने मर्द तुझे किस बात का…

कवि

ओ कवि, जरा सम्भल कर लिखना यह कविता नही परछाई है तेरी आत्मा का प्रतिरूप यह तेरे अन्दर छिपी भावनाओं की प्रतीक है अच्छे या…

दो पहलू

सिक्के के दो पहलू समालोचना और आलोचना मन-पल्लवित होता सुन समालोचना वही रचना में आता निखार सुन आलोचना स्वीकारो ह्रदय से दोनों को एक समान…

इन्सान

इन्सान नहीं कुछ बोलता वक़्त हैं बोलता बंदा कुछ नही हालातों से घिरा हुआ यह दिल है कुछ भरा हुआ काफिला खट्टी-मीठी यादों का छलकता…

चुनाव

अरे भाई,चुनाव का वक़्त आया है , क्या करना है? कुछ भी करो, धर्म-धर्म खेलो, जाति-जाति खेलो, औरत संग अनाचार करवा लो, हर दुखती रग…

मायानगरी

हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती एक बार फिर साबित यह होता है मत भागो चमकती चीज़ों के पीछे यह सब एक छलावा हैं उस…

निर्भया

रात भी खुद के तम से डरी होगी चाँद की चमक भी शर्मिंदा होगी तारों ने ना टूटने की कसम खाई होगी जब बेबसी में…

खुद की जंग

ना जाने कितनी निर्भया ना जाने, कैसी मर्दानगी बर्बरता की हदें लांघी जुबां तक काटी धरती भी नहीं कांपी कानून को कुछ ना समझे कौन…

आम का बाग़

भगवान् की कृपा से मैने आमों के पेड़ों से भरा इक घर पाया हरेक पेड़ ने अलग-अलग रंग रूप पाया सबका आकार अलग,महक अलग फ़िजा…

नया समाज

चलो आज अपने घर को ऐसा घर बनाते हैं जिसमे बड़े पेड़ के नीचे , नए पौधों को पनपने का सुख दे, खुशी से जिंदगी…

अन्न- दाता

आज हमारा जीवन रक्षक, अन्न- दाता कर्म भूमि छोड़ कर दर – बदर सड़कों पर, संघर्ष करता, गरीब हर साल और गरीब होता जाता, सदियों…

मासूम बचपन

मासूम बचपन कुचला जा रहा भीतर से सहमा, बाहर से उददंड हुया बिखरता हुया , गैज़ेटस के तले , अपनों के स्नेह-सानिध्य से वंचित सहमा…

साँवरे

साँवरे, इसमें हमारा नही कोई दोष तुम्हारा ख्याल आते नही रहता होश हमारी तो क्या बिसात जब खयाल तेरा राधे को करता मदहोश।

हिन्दी -भाषा

सीमित अक्षर, सीमित मात्राऐं रचा शब्दों का असीमित भण्डार बना विशाल वृन्द भरे शब्दकोश बेशुमार कैसा खेल रचाया है इन शब्दों ने महकाया काव्य दरबार…

मानव तन

कुकडू -कडू कुकडू -कडू करता रहूँ , करता रहूँ मन में सोच रहा, मैं भी तो एक जीव हूँ, बांग से जगाता हूँ, महफ़िलों की…

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