अंधों में काना राजा
हावी होने लगता हैं कुछ थोड़ा पाकर ही चाहे वो धन/पद/शोहरत हो, कमतर को पांव की जूती समझ अभिलाषा करता हैं राज्य करने की, और…
हावी होने लगता हैं कुछ थोड़ा पाकर ही चाहे वो धन/पद/शोहरत हो, कमतर को पांव की जूती समझ अभिलाषा करता हैं राज्य करने की, और…
जब राहें कंटकित व वीरान हो, और कोई ना तेरे साथ हो, तब तुम व्यथित होना नहीं, हिम्मत मन की खोना नहीं, जब होता कोई…
तुम एक पहेली सी लगती हो समझ ही नही आती हो जब मैं खुश होती हूँ तुम दूर खड़ी मुस्कुराती हो जब मैं पीड़ा में…
कटघरे में खड़ा है हर शख्स आज… कुदरत पूछ रही है कई सवाल आज… काबिल है क्या कोई हम में से जवाब जो दे सके…
भोर होती है हर रोज बहुल के लिए आशा की एक किरण लेकर नऐ विचार नई ख्वाहिशें नई चाह नई भूख जो होती है पद-प्रतिष्ठा…
हे रंगरेज़ बावरी मत समझ लेना बात बार-बार दोहरांयू तो यह अदा है इज़हार की मुकम्मल नही हूँ, हूँ कुछ अधूरी सी रंग दोगे जो…
आंखे तेरी सब कह देती है हाले दिल बयां कर जाती है जो कह नही पाते हो जुबान से वही दर्द वो चुपके से बता…
आखिर इक दिन सबको जाना है यह जग चला चली का मेला है यहाँ किसी का नही ठिकाना है फिर किस बात का घबराना है…
आज valentine’s day है मौसम मनचला सा हो रहा है हर और इश्क खिल उठा है याद कर रही हूँ खूबसूरत लम्हों को, नही, मुझे…
आज कल रसोई घर में खलबली सी मच रही है चाय और काफ़ी रहती थी सगी बहनों सी ग्रीन टी आकर सौतन सी अकड़ रही…
मत देख अपनी नज़र से हर बार कभी तो ले तु मेरी नज़र उधार ।
सोच समझ के बोल रे बंदिया सोच समझ के बोल जो तु बोले, तेरा पीछा ना छोड़े मांगे हर अल्फाज़ अपना हिसाब मान-अपमान दिलवाते, दिखलाये…
यह जो जिंदगी इतना सबक सिखाऐ जा रही हो मुझे अनुभवों का पुलिंदा बनाऐ जा रही हो जिंदगी है चार दिन की क्यों इतनी मगजमारी…
आजो सारे, आजो सारे ,रल मिल लोहड़ी पाइऐ, दुल्ला भट्टी दा गीत गा,विहड़े विच अलाव जलाइऐ, मूँगफली,गच्चक,रेवड़ी खाइऐ ते सबनू खवाइऐ, मक्की दी रोटी, सरसों…
जिंदगी इक तमाशा है तमाशा वेखण आया ऐ बंदिया तु वेख जी भरके ज़माने दे रंगां नु पर किसे दा तमाशा बनावी ना ते आपनां…
वो छत क्या अचानक गिर गई गिरी नही ऐसा कहो गिराई गई नींव संवेदनहीनता की रेत लालच की ईंट भ्रष्टाचार की सीमेंट बेईमानी का माया…
उठती रहेगी इक लहर सागर से निरंतर जो समाहित कर लेगी हर पीड़ा जो दी बीते वर्ष ने हर बार होगी इक नईं हिलोर जो…
आ रहा है दौ हजार इक्कीस का नव वर्ष करते हैं हम दिल से अभिनंदन बार-बार इक्कीस अंक होता है प्यारा सा शगुन आना तुम…
बीत जाएगा यह वक़्त भी वक़्त कभी थमता नही अगर थमता तो वक़्त कहलाता नही एक दिन यह वक़्त इतिहास बन जाएगा इतिहास दोहराया जाता…
कृष्णा जी की प्यारी ,राधा न्यारी बसो मोरे मन मन्दिर बिहारी,संग वृषभानु दुलारी तुम बिन कोई ना ठौर हमारी, जाऊँ बलिहारी पल पल याद करूँ…
उफ्फ़ ,यह सर्द हवाऐं मद्धम सा सूरज ना बाहर बैठा जाए ना भीतर चैन आए।
प्रिये, यह आज तुमने कैसी चाय है बनाई कौन सी लजीज़ वस्तु है मिलाई घूंट-घूंट पीते अजब रूहानी मस्ती है छाई इससे पहले तो कभी…
क्यों दोधारी तलवार से हैं लोग… क्यों सच को स्वीकार नहीं कर पाते हम लोग…. जानते हैं कुछ साथ नहीं कुछ जाना फिर भी क्यों…
क्यों दिल्ली आज हिल रही क्यों इतना डर रही वो ह़क लेने आ रहे जान की बाजी लगा रहे राह में कितने रोड़े अटकाओगे अब…
मै नन्हा सा दीपक माटी का घी संग बाती जब दहकूं खिलखिला कर हसूं चांद के जैसे इतराऊं तम को गटागट पी जाऊँ शांत नदिया…
प्यार दूर की बात सम्मान कभी सपने में भी ना सोचूं तुम तो देखने से भी कतराए देख कर नज़र फेर ली फिर कहते हो…
अश्क जो बहे नयनों से लुढ़के गालों पे मेरे किसी ने ही देखे अनदेखे ही हुऐ अश्क जो अटके गले में गटके हर सांस में…
विजयादशमी का यह पावन पर्व वर्षों से समाज को सच्चाई का सबक सिखाऐ पर आज यह एक प्रश्न उठाये आज प्रतयंजा कौन चढ़ाऐ कौन बाण…
हर पल लगता बहुत सीख लिया अब जीवन में भ्रम तोड़ जाती हर शाम इक नईं शिक्षा दे
नहीं होता हर किसी के बस में रिश्तों को ताउम्र सम्भालना पड़ता है खुद को दांव पर लगाना।
सुस्वागतम् मैय्या आन बसो मोरे मन मन्दिर धड़कन मानिंद।
कभी दिशा, कभी निर्भया,कभी मनीषा ,नन्ही बच्ची कोई, बस नाम अलग-अलग,कहानी सबकी एक, हर घड़ी डर का साया, ना जाने मर्द तुझे किस बात का…
ओ कवि, जरा सम्भल कर लिखना यह कविता नही परछाई है तेरी आत्मा का प्रतिरूप यह तेरे अन्दर छिपी भावनाओं की प्रतीक है अच्छे या…
सिक्के के दो पहलू समालोचना और आलोचना मन-पल्लवित होता सुन समालोचना वही रचना में आता निखार सुन आलोचना स्वीकारो ह्रदय से दोनों को एक समान…
इन्सान नहीं कुछ बोलता वक़्त हैं बोलता बंदा कुछ नही हालातों से घिरा हुआ यह दिल है कुछ भरा हुआ काफिला खट्टी-मीठी यादों का छलकता…
अरे भाई,चुनाव का वक़्त आया है , क्या करना है? कुछ भी करो, धर्म-धर्म खेलो, जाति-जाति खेलो, औरत संग अनाचार करवा लो, हर दुखती रग…
हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती एक बार फिर साबित यह होता है मत भागो चमकती चीज़ों के पीछे यह सब एक छलावा हैं उस…
रात भी खुद के तम से डरी होगी चाँद की चमक भी शर्मिंदा होगी तारों ने ना टूटने की कसम खाई होगी जब बेबसी में…
अब के बाद मां-बाप मां-बाप ना रहेंगे ना जिंदा ना मुर्दा रहेंगे तो बस सांस लेती काया।
ना जाने कितनी निर्भया ना जाने, कैसी मर्दानगी बर्बरता की हदें लांघी जुबां तक काटी धरती भी नहीं कांपी कानून को कुछ ना समझे कौन…
बस कुछ दिन की बात है सब भूल जाएंगे काम – धन्धों में मशगूल हो जाएंगे नईं कहानी का शोर मचाएंगे फिर कोई और निर्भया…
भगवान् की कृपा से मैने आमों के पेड़ों से भरा इक घर पाया हरेक पेड़ ने अलग-अलग रंग रूप पाया सबका आकार अलग,महक अलग फ़िजा…
चलो आज अपने घर को ऐसा घर बनाते हैं जिसमे बड़े पेड़ के नीचे , नए पौधों को पनपने का सुख दे, खुशी से जिंदगी…
आज हमारा जीवन रक्षक, अन्न- दाता कर्म भूमि छोड़ कर दर – बदर सड़कों पर, संघर्ष करता, गरीब हर साल और गरीब होता जाता, सदियों…
मासूम बचपन कुचला जा रहा भीतर से सहमा, बाहर से उददंड हुया बिखरता हुया , गैज़ेटस के तले , अपनों के स्नेह-सानिध्य से वंचित सहमा…
साँवरे, इसमें हमारा नही कोई दोष तुम्हारा ख्याल आते नही रहता होश हमारी तो क्या बिसात जब खयाल तेरा राधे को करता मदहोश।
सीमित अक्षर, सीमित मात्राऐं रचा शब्दों का असीमित भण्डार बना विशाल वृन्द भरे शब्दकोश बेशुमार कैसा खेल रचाया है इन शब्दों ने महकाया काव्य दरबार…
कुकडू -कडू कुकडू -कडू करता रहूँ , करता रहूँ मन में सोच रहा, मैं भी तो एक जीव हूँ, बांग से जगाता हूँ, महफ़िलों की…
जब सब के भीतर तु है समाया तब भी मुझे कैसे तु नजर ना आया ख़तावार हूँ मैं खुद को ना इसका पात्र बना पाया।
लगता था जिंदगी बहुत बेमानी हो गई पहले-पहल ऐसे लगा कुछ छूट रहा यह जग सारा टूट रहा फिर कुछ दिन बीते मन शांत होने…
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