अब क्या देखूँ हे गिरिधारी
इन अँखियों न देखी बड़ दुनिया
अब क्या देखूँ हे गिरिधारी?
जब भी देखा दुनिया में तो
देखा पंचविकार कबाड़ी।।
काम दिखा और लोभ दिखा।
मोह महामद क्रोध दिखा।।
इन पांचों ने मिलकर
मुझको बना दिया दुराचारी ।।
अब क्या देखूँ हे गिरिधारी?
बाहर -भीतर तुम हीं तुम हो
फिर क्यों देखूँ बाहर संसार?
अन्तर्मन का नयन खोल रे
‘विनयचंद ‘एक बार।
बिन अँखियाँ तुझे दर्शन देंगे
हरदम कृष्ण मुरारी।।
अब क्या देखूँ हे गिरिधारी?
Nice
Thank you
Wah👏👏
Jai ho
वाह बहुत सुंदर
जय कन्हैया लाल की
Good