आजादी
सुभाष,भगत,आजाद ने, दे दी हमे आजादी !
वीरो के कुर्बानी रंग लायी, वन कर देश की आजादी !!
अंत हुआ अत्याचारो के अत्याचार, टूटा गरूर गद्दारो के !
धरती भी झूम उठी वर्षो बाद, उन्हें मिली जो आजादी !!
धूम मचाया रंग जमाया, गद्दारो को खूब नाच नचाया !
लाखों जुल्म सह के भी, त्यागे न हम अपनी आजादी !!
गद्दारो को क्या खबर थी, कब टूट पड़ेगे हम उन पर !
हम सब के नस-नस में, लहू बन गयी थी आजादी !!
लहू को हमने समझ कर पानी, देश पर न्यौछावर किया !
लाखों कोड़े खा कर भी, भूले नहीं हम अपनी आजादी !!
हमने जो झुक कर किया था, गद्दारो को कभी सलाम!
वह सलाम नहीं, उसी सलामी के आड़ में छूपी थी हमारी आजादी!!
भूख प्यास के गला घोट कर, वीरो को बलि चढ़ा कर !
तब कही जा कर हमने पायी, अपनी देश की आजादी !!
कही ” करो या मरो के नारा, “तो कही इंक्लाब जिंदाबाद” के नारा !
इन्हीं नारे में छूपी थी, अपनी देश की आजादी !!
कुर्बानो की टोली में कभी चली थी लाखों गोलियां !
शेर को जगा कर गद्दारो ने मस्तिष्क में भर दिया आजादी !!
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Pt, vinay shastri 'vinaychand' - May 24, 2020, 12:13 pm
Nice
Aman Kumar Shastri - June 5, 2020, 7:50 pm
Thank you very much
Pragya Shukla - May 24, 2020, 1:34 pm
Good
Aman Kumar Shastri - June 5, 2020, 7:51 pm
Thanks for increasing my encourage.
महेश गुप्ता जौनपुरी - May 24, 2020, 1:41 pm
वाह
Praduman Amit - May 25, 2020, 12:55 pm
कविता अच्छी है।
Abhishek kumar - May 26, 2020, 9:16 am
जय हो
Aman Kumar Shastri - June 5, 2020, 7:52 pm
Jay ho