आठवें वचन के साथ, गृहस्थ को अपनाता हैं…
छोटी-सी ज़िंदगी में, हर कोई अपने सपनें सजाता हैं।
विवाह तो सभी करते हैं… वह फौजी हैं साहब, जो आठवें वचन के साथ गृहस्थ जीवन अपनाता हैं।
मात-पिता की सेवा को जो, भार्या घर छोड़े जाता हैं..
खुद ‘भारत मॉं’ की रक्षा का बेड़ा उठाए सीमा को तैनात होता हैं।
वह फौजी हैं साहब, जो आठवें वचन के साथ गृहस्थ जीवन अपनाता हैं।
हमें अपना परिवार देखें बिना रहा न जाता हैं..
बच्चे कब बड़े हुए, बहना कब सयानी हुई, उसे यह भान भी न हो पाता हैं।
बहन-भाई की शादी को भी फर्ज़ के खातिर जो छोड़े जाता हैं।
वह फौजी हैं साहब, जो आठवें वचन के साथ गृहस्थ जीवन अपनाता हैं।
परिजनो संग त्यौहार मनाते, खुशिया भी लुटाते हैं…
उसके तो त्यौहार-ऋतु सब बार्डर पर गुजर जाते हैं
मौत के ख्याल भर से हमारी रूह भी कांप जाती हैं
वह अपनी जान हथेली पर लिए, मातृ-भूमि के नाम कर जाते हैं।
वह फौजी हैं साहब, जो आठवें वचन के साथ गृहस्थ जीवन अपनाता हैं।
पैसा-मकान की झूठी शानें दिखलाते हैं…
एक नज़र ‘तिरंगे’ में लिपटे ताबूतो पर डालो, उसके आगे सभी शानें फीकी पड़ जाती हैं
अपने बलिदान के साथ, बाप का सीना..
वह २६” से ४२” का कर जाता हैं
वह फौजी हैं साहब, जो आठवें वचन के साथ गृहस्थ जीवन अपनाता हैं।
HEMANKUR❤️
Nice
Good
very nice
nice poetry
बहुत खूब
Thanq
nice poetry
Thanq Ma’am
उम्दा रचना
Thanq sir
वे
सैनिकों को सलाम