इश्क की गोद
इश्क की गोद में जा बैठी
जो कातिल था उसी को मीत बना बैठी।
बुझ गई थी बहुत पहले ही क्यूँ आज
दिल की आग जला बैठी।
वो ख्व़ाब था किसी की नींदों का
क्यूँ उसे अपनी रात बना बैठी।
जो झूठ के दायरे में रहता था
क्यूँ उसी के आगे सदाकत की नुमाईश लगा बैठी।
जख्मों पे नमक चिढ़कना पेशा था जिसका
दिल के छाले उसी को दिखा बैठी।
प्यार सुन्दरियों का व्यापार था जिसके लिए
उसी को मोहब्बत का खुदा बना बैठी।
ख्व़ाब देखे थे जो हमनें नींदों में
उन्हीं को छत पर मैं सुला बैठी।
कितनी पागल है तू ‘प्रज्ञा’
जो प्रेम का खिलाड़ी था
उसे ही जज्बातों से खिला बैठी।
Nice
Thanks
Bahut khoob
थैंक्स
Nice
थैंक्स
Nice
थैंक्स
Waah
थैंक्स
Very nice