ओ बीते दिन

ओ बीते दिन
ये उन दिनों की बात है,जब बेरोजगारी का आलम पूरे तन मन मे माधव के दीमक में घोर कर गया था,घर की परिस्थिति भी उतना अच्छा नही था कि वे निठल्ला घूम सके…….
…क्योंकि बाबू जी कृषि मजदूरी करके पूरे परिवार का भरण पोषण कर अपने फर्ज को निभा रहे थे ।
और इधर माधव गाँव मे ही रह कर पढ़ाई के साथ-साथ अपने माँ के साथ घर के हर कामो में हाथ बटाते.और इसी तरह उन्होंने हायर सेकेंडरी स्तर तक कि पढ़ाई पूरा कर लिए……….और कुछ दिनों बाद निजी विद्यालय में शिक्षक के रूप में कार्य करने लगा.लेकिन कब तक अल्प वेतन मे जिंदगी की गाड़ी कैसे चल सकता है | एक तो जवान बेटा है………..कई बार तो अपने माँ बाप के ताने सुनना पड़ता था,माधव के मन मे निराश के बादल छा जाते लेकिन अपने मन को डिगने नही दिया…………….अपने दोस्तों के साथ मन में उठने वाले पीड़ा को बाँट कर मन के दुख को हल्का कर लेते और आगे के बारे में सोंच कर उमंगता के साथ कार्य मे जुट जाते…………….. “मन के हारे हार है,मन के जीते जीत”
यही भाव लेकर हमेशा चलता.और रोज अखबारों में इस्तिहार को देखेते कहीं अपने लायक रोजगार तो न निकला हो एक दिन अखबार के माध्यम से शहर के एक स्कूल में चपरासी का पद निकला था. वेतन भी कुछ अच्छा था साथ ही साथ शहर की बात है.माधव सोचने लगा और मन मे कुछ नया करने का विचार लाया…………और चपरासी के लिए अपना आवेदन डाक के द्वारा भेज दिया,ओ तो ईश्वर के अच्छे कृपा माने या अपना शौभाग्य,कुछ दिनों बाद उनको नौकरी का आदेश मिल गया,परिवार में खुशी का माहौल छाने लगा क्योंकि होना भी चाहिए बेटा का जो नौकरी लगने वाला है,माधव खुशी-खुशी माँ बाप का आशिर्वाद लेकर शहर की ओर नौकरी करने चल पड़ा……..ओ पहला दिन जैसे-तैसे अपने पद के ज्वानिंग करने स्कूल के कार्यालय में गया…….
ज्वानिंग जैसे ही किया और वहाँ के प्राचार्य से मिलने गया……..तो प्रचार्य के हिड़कना उनके ऊपर मानो ऐसे बिजली गिरा हो जैसे माधव यहाँ आ कर कोई पाप कर गया हो,क्या पद ही ऐसा होता कि कोई छोटे कर्मचारिय का सम्मान न हो …………माधव आवक स रह गया और अपना कार्य ईमानदारी के साथ करने लगा……लेकिन चपरासी के पद उनको हर समय खलने लगा और वह कमर कस लिया कि मुझे इससे अच्छ पदों में कार्य करना है……………..और अपने योग्यता में विस्तार करते गया,कभी-कभी अन्य कर्मचारी के खीझ को सुनता,प्राचार्य का डाँट ऐसा लगता मानो कोई सीने मे भाला बेद रहा हो………………..
ये सारी बात को माधव एक चुनौती के रूप में स्वीकार कर अपने कार्य मे लगा रहा । और एक दिन उच्च पद में जाने का अवसर प्राप्त हुआ ……………लेकिन माधव को हर समय ओ बिता हुआ पल को याद कर यही सोचते क्या छोटे कर्मचारी,कर्मचारी नही होते क्या वे सम्मान के पात्र नही है इसी तरह उनके साथ व्यवहार किया जाता है ………………..यही सोच कर मन मे कई सारे प्रश्न उठने लगता और ओ बीते दिन याद कर बार-बार अपने आप से प्रश्न करता अरे ओ मेरे बीते दिन ………

योगेश ध्रुव भीम

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