कत्ल कर देना मगर…
मैं सोचती थी तुम
बदल गये हो
नये रंग, नए ढाँचे
में ढल गये हो..
पर ऐसा कुछ भी
नहीं हुआ
तुम जैसे थे वैसे ही हो..
बस कुछ लोग पीठ पीछे
तुम्हारी बुराई किया करते हैं
मेरे पास बैठकर
तुम्हारी बातें किया करते हैं…
दिल ही दिल में
जल जाती हूँ मैं…
तेरी बेवफाई के किस्से
सुनकर मर जाती हूँ मैं…
कसम है तुम्हें
मुझसे बेवफाई मत करना…
चाहें कत्ल कर देना मगर
दिल मत तोड़ना..
सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद
कवि प्रज्ञा जी की बहुत सुंदर रचना ।वैसे,”सुनी सुनाई पर विश्वास नहीं किया करते”….. बहुत सुंदर प्रस्तुति
धन्यवाद दी
कवि वही जो हर रंग में रंग जाये।
धन्यवाद सर
अतिसुंदर