कर्ज माता पिता का
है मोल कहाँ इस दुनिया में
जो बूंद एक का चुका सके।
मात पिता का कर्ज है कोई
दिल देकर भी मुका सके।।
कहना कभी विरुद्ध नहीं।
होके इन पर क्रुद्ध नहीं।।
सेवा में होवे कमी नहीं।
आँखों में आए नमी नहीं।।
वरद हस्त हो इनका जिसपर
उसे ‘विनयचंद ‘कौन झुका सके।
है मोल कहाँ इस दुनिया में
जो बूंद एक का चुका सके।।
Very nice
Thank you very much
सुन्दर रचना
धन्यवादः
Sundar
धन्यवाद
Nice
Thanks
Nice
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Wah
Thanks
बढ़िया
ਧਨਵਾਦ
सही कहा