कुछ कह नहीं सकता
मिल जायेगी ताबीर मेरे ख्वाबों की एक दिन,
या ख्वाब बिखर जायें कुछ कह नहीं सकता।
बह जाउं समंदर में तिनके की तरहं या फ़िर,
मिल जाये मुझे साहिल कुछ कह नहीं सकता।
इस पार तो रौशन है ये मेरी राह कहकशा सी,
मेरे उस पार अंधेरा हो कुछ कह नहीं सकता।
गुमनाम है ठिकाना और गुमनाम मेरी मंजिल,
किस दर पे ठहर जाउं, कुछ कह नहीं सकता।
एक बेनाम मुसाफिर हूँ और बेनाम सफर मेरा,
किस राह निकल जाउं, कुछ कह नहीं सकता।
कर दी है दिन रात एक रौशन होने की ख़ातिर,
पर किस कोठरी का अँधेरा मिटाऊँ कुछ कह नहीं सकता।
बन कर बहता रहा हूँ फ़िज़ाओं में हवाओं की तरह,
पर किसे कब छू जाऊं कुछ कह नहीं सकता।
करता हूँ फरियाद मन्दिर, मस्ज़िद गुरुद्वारे में सर झुकाकर,
किस दर पर हो जाए सुनवाई कुछ कह नहीं सकता।
राही (अंजाना)
बहुत खूब
धन्यवाद् सर जी
Bhaut Umdaa Peshkash Saxena Ji
धन्यवाद जी
Good
बेहतरीन सृजन