कृष्णलीला

*कृष्ण लीला*

तू दधि चोर तो; तोही न छोडूं,
पकड़ बांह तोरे; कान मरोड़ूँ !
लल्ला मेरो मोही हिय ते प्यारा
तोसे कुढ़त गोकुल ब्रिज सारा

*खा सौं अब तू मोरी,*
*न करिहउँ अब मै चोरी* !!

जग के पालक: जननी के बालक,
प्रहसन करते; जग संचालक !
जड़ चेतन बंशी सुन हिलते!!
ग्वालन संग जमुना तट मिलते,

*खा सौं अब तू मोरी,*
*न करिहउँ अब मै चोरी* !!

गाय चरैया, पर्वत को उठइया,
बिषधर को, जमुना में मरैया !
पुरबाशिन को लाज न आवत,
मोरे लल्ला को, चोरी लगावत!!

*खा सौं अब तू मोरी,*
*न करिहउँ अब मै चोरी* !!

धीरेन्द्र प्रताप सिंह “धीर”
भूत पूर्व सैनिक
रायबरेली (उत्तर प्रदेश)

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Responses

  1. मै एक भूत पूर्व सैनिक हूँ !
    भावनाओं का उदगार असीमित है परन्तु शब्द और लेखनी सीमित !
    आपके शुभाशीष को ही शाबाशी मानूंगा !
    जय हिन्द

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