कोई खिडकी न खुले और गुजर जाऊं मैं
हादसा ऐसा भी उस कूचे में कर जाऊं मैं
कोई खिडकी न खुले और गुजर जाऊं मैं
सुबह होते ही नया एक जजीरा लिख दूं
आज की रात अगर तह में उतर जाऊं मैं
मुन्तजिर कब से हूं इक दश्ते करामाती का
वह अगर शाख हिला दे तो बिखर जाऊं मैं
जी में आता है कि उस दश्ते सदा से गुजरूं
कोई आवाज ना आये तो किधर जाऊं मैं
सारे दरवाजों पे आईने लटकते देखूं
हाथ में संग लिये कौन से घर जाऊं मैं
Good
वाह
सुबह होते ही नया एक जजीरा लिख दूं
आज की रात अगर तह में उतर जाऊं मैं
बेहतरीन लेखनी