Categories: शेर-ओ-शायरी
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हम क्या-क्या भूल गये
निकले हैं हम जो प्रगति पथ पर जड़ों को अपनी भूल गये मलमल के बिस्तरों में धँस के धरा की शीतलता भूल गये छूकर चलते…
उम्र लग गई
ख्वाब छोटा-सा था, बस पूरा होने मे उम्र लग गईं! उसके घर का पता मालूम था , बस उसे ढूंढने मे उम्र लग गईं !…
शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
हमसे दीवाने कहाँ..
अब कहां हमसे दीवाने रह गये प्रेम की परिभाषा और मायने बदल गये, तब न होती थी एक- दूजे से मुलाकाते, सिर्फ इशारों मे होती…
जंगे आज़ादी (आजादी की ७०वी वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर राष्ट्र को समर्पित)
वर्ष सैकड़ों बीत गये, आज़ादी हमको मिली नहीं लाखों शहीद कुर्बान हुए, आज़ादी हमको मिली नहीं भारत जननी स्वर्ण भूमि पर, बर्बर अत्याचार हुये माता…
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Thanks bhai
Wah
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मार्मिक अभिव्यक्ति की
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