क्या हो तुम

मेरी हर गीत, हर साज़ हो तुम ।
कल को भूला दूँ, वो आज हो तुम ।
कैसे बयान करूँ, क्या हो तुम,
मुझ बेज़बां की, आवाज़ हो तुम ।।

मेरी हर नज़्म, हर ग़ज़ल हो तुम।
तुम ही ज़िंदगी और अजल हो तुम।
कैसे बयान करूँ, क्या हो तुम,
ख़ुदा की हँसीन, फ़ज़ल हो तुम।।

मेरी ज़िंदगी, हर साँस हो तुम ।
ज़िन्दा रहने की आस हो तुम ।
कैसे बयान करूँ, क्या हो तुम,
मेरी आख़िरी तलाश हो तुम ।।

मेरी हर राह, हर मंज़िल हो तुम ।
बहता दरिया हूँ, शांत साहिल हो तुम ।
कैसे बयान करूँ, क्या हो तुम,
तन्हां ज़िंदगी में, भरी महफ़िल हो तुम ।।

मेरी हर ज़ंग, हर जीत हो तुम ।
मधुर सूरों की, संगीत हो तुम ।
कैसे बयान करूँ, क्या हो तुम,
खुद को मिटा दूँ, वो प्रीत हो तुम ।।

मेरे ख़ुदा, मेरी हर परस्तिश हो तुम ।
शराब हो या शीरा-ए-कशिश हो तुम ।
कैसे बयान करूँ, क्या हो तुम,
जां से अज़ीज़ ‘देव’ की मोनिस हो तुम ।।

देवेश साखरे ‘देव’

अजल- मौत, फ़ज़ल- पुण्य, परस्तिश- पूजा,
शीरा-ए-कशिश- मीठा लगाव, मोनिस- साथी

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