चांद पे चरखा चलाती रही……..
चांद पे चरखा चलाती रही……..
खुदा की दुनिया है, इसमें तो क्या कमी होगी
हमारी आंख ही में ठहरी कुछ नमी होगी।
जितना जीने के लिये चाहिये वो सब कुछ है
नहीं लगता है कि ऐसी कहीं जमीं होगी।
फिर से कोई सुना के हो सके तो बहला दे
वो सब कहानियां बचपन में जो सुनी होंगी।
चांद पे चरखा चलाती रही बुढिया कब से
इतना काता है तो कुछ चीज भी बुनी होगी।
आईना बन के चमकती है आस्मां के लिये
वो बर्फ आज भी पहाड़ पर जमी होगी।
………………सतीश कसेरा
Good
Very good