छोटी सी मुलाक़ात

वह छोटी सी मुलाक़ात
विचरती रहती है अक्सर
स्मृतियों में मेरी ।

जब सिमट आए थे तुम
मेरी पलकों के दायरे में,
सकुचाते हुए,
छोटे-छोटे कदमों से…
मुस्कुराती हुई कोई बहार
उतर आई हो
किसी वीरान उपवन में जैसे ।

सुनो न !
एक बार फिर से भर दो
मन की सूनी टहनियों में वही फूल
तितलियों से एकाकी आकाश
और फ़िज़ाओं में उन्हीं साँसों की महक ।
सदियों तक रहेगा इंतज़ार
कभी फिर से आ जाना
उसी उपवन की देहरी पर,
सकुचाते हुए,
छोटे-छोटे कदमों से चलकर
ऐ बहार !

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