” तलबगार हो गए “
तलब ऐसी उठी दिल से…..
की उन्हीं के तलबगार हो गए….
जमाने की जुबां पर ….
किस्से हमारी मुलाकातों के बार – बार हो गए….
पता कर चुके थे , हैँ उनकी तरकश में इक तीर – ए – मोहब्त …..
और उसी तीर के हम शिकार हो गए….
तलब – चाह
तलबगार -चाहने वाला
Aapki kavita Ke him bhi talabgaar he
Ap sbhi ka sath mila to hamesa hum apko talabgaar hi rkhenge. Sarkar
nice
Sukriyaaa anjali ji
hats off to you!
Thank uuuuu……..ji
बहुत खूब
बेहतरीन
बेहतरीन प्रस्तुति