तलवार अब जरूरी
तलवार जरूरी
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मराठे, राजपूत, सिख सदा
उसूलों पर ही चले थे।
सीने पर तीर खाएं….
फिर भी…
पीठ पीछे ना वार किए थे।
अंग्रेज या मुगल हो
इनसे ….
धोखे पर धोखे खाए।
हाथ दोस्ती के थामे..
पीठ पर हमेशा खंजर खाये।
इतिहास को पलट लो
दर्पण है आज का भी।
पीठ पीछे वार सहना…
नियति है आज की भी।
सीमा पर हाल देखो!
वीर रक्षक वहां अड़े हैं।
दुश्मन धोखा देने को आज भी तैयार खड़े हैं।
महामारी के कारण.
यहां सब घर में कैद पड़े हैं।
कुछ द्रोहीयो के कारण
खतरे में सब पड़े हैं।
क्या आज का भी भारत
बस ढाल भर रहेगा????
कब तक ऱोकेगा खुद को
तलवार कब बनेगा?
शांति ,स्वागत, अतिथि देवो भव से
दुश्मनों के हौसलों में
कब तक इंधन भरेगा?
जाने नहीं है सस्ती,
इस देश के रक्षकों की।
आगे बढ़ खात्मा हो,
तब ही होगी गई जानो की तृप्ति।
महामारी का हो.. जो साथी
देशद्रोह से नवाजो।
फांसी के फंदे पर ही,
उनकी आरती उतारो।
कुछ सख्त नियम पालन
अब हो गया जरूरी।
देशद्रोहियों का सफाया
सिरे से है जरूरी।
नरम दिल बहुत बन् लिए
कठोर आवरण अब जरूरी।
ढाल बहुत बन लिए
अब तलवार है जरूरी।
अब तलवार है जरूरी।
निमिषा सिंघल
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Pt, vinay shastri 'vinaychand' - May 11, 2020, 7:46 am
Nice
Pragya Shukla - May 11, 2020, 11:45 am
Good
Abhishek kumar - May 11, 2020, 12:05 pm
Good
महेश गुप्ता जौनपुरी - May 11, 2020, 10:33 pm
वाह