तुम्हारे घर आने की

तुम्हारे घर आने की बड़ी बेसब्री थी
मगर जब वापस आ रही थी
तो कोई मेरे कदम पीछे को खींच रहा था
वो मेरा दिल था
कदम भारी थे
रास्ता बहुत कठिन और दिल में बेचैनी सी थी
ना जाने क्यूं किसे पता
तुम्हारा इन्तज़ार किया मगर
दीदार ना हुआ
तभी तो उस दिन ठगा सा
महसूस हुआ मुझे
ऐसा एहसास फिर
कभी ना हुआ

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