तो अच्छा हो
ज़रा कुछ देर रहमत हो सके तो अच्छा हो ,
ज़रा मन शांत होकर सो सके तो अच्छा हो.
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ख़तो के ज़ाल में उलझे हुए है मीर हम ,
ज़रा कुछ देर खुद में खो सके तो अच्छा हो .
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गुज़र गया है मुसाफिर फिर शहर से तेरे ,
तेरा कुछ राब्ता दिल हो सके तो अच्छा हो .
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न कह पाया जुबा से हाल दिल का अब तलक,
ज़रा अब हर्फ़ मेरे कह सके तो अच्छा हो.
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सुना है हिज़्र के किस्से ,विरह की दास्ताँ समझी,
ज़रा अपना भी दिल अब रो सके तो अच्छा हो
…atr
Itni achi ghazal share karne ke liye shukriya!
thank u dost.. waise mai meer ke name se likhta hu kabhi kabhi .. isiliye aa jata hai ..
Wow
thanks
today i logged in after a month … nw m very pleased to see this ghazal is regarded as poem of months fr july 15 … thnk u all..
वाह
🙏🙏
Very nice