दुःखी आत्मा….!!
निस्तेज-सी
स्तब्ध-सी
असहाय-सी
अधूरी-सी
निर्वेद-सी
बैठी थी..
दुनिया की सबसे दुःखी आत्मा
मैं ही थी…
आपा खोकर भी मौन थी
तुमसे दो टूक
करने के बाद
सारे ऱिश्ते खत्म करने
के बाद
क्रोध में आकर
फेंक दिया मैंने
छत से अपना प्यारा फोन!!
बैटरी अलग
ढक्कन अलग
यूं बिखर गया..
उठाया, समेटा, जोड़ा
पर ना खुला
ना चला
टूटा तो नहीं परन्तु
आह !
मेरा फोन भी तुम्हारे प्यार में
मेरी तरह अन्धा हो गया..
ना वो बनवा पाई
ना दूसरा ही खरीद पाई…!!
क्रोध की सटीक अभिव्यक्ति….पर फ़ोन तो ना तोड़ती ।
पहले खुद कूदना चाहती थी फिर सोंचा फोन फेककर देखूं..
फोन की हालत देखकर इरादा बदल दिया..
हा हा हा.
सिर्फ कल्पना है दी
फोन नहीं फेकूगी दूसरे का वरना फिर मांगे भी नहीं मिलेगा
ये हुई ना बात👏
बहुत खूब, सुन्दर अभिव्यक्ति
Tq
बहुत खूब
Thanks
🤔🤔✍👌👌🤝
Thanks
Very nice poetry