द्रौपदी का प्रण
बाहुबल से सबल रहे,
फिर क्यों विफल रहे।
केश पकड़ घसीटा गया,
भरी सभा मुझे लुटा गया।
दुःशासन का दुस्साहस तुम देखते रहे,
दुर्योधन का अट्टहास कर्ण भेदते रहे।
वरिष्ठ सभासद मूक दर्शक बने रहे,
कौरवों के भृकुटी क्यों तने रहे।
वो चीर मेरा हरते रहे,
अस्मिता तार करते रहे।
केशव ने रक्षा-सूत्र का धर्म निभाया,
भरी सभा मुझे चीरहरण से बचाया।
क्यों पतिधर्म का खयाल न आया,
क्यों तुम्हारे रक्त में उबाल न आया।
अंहकार के मद में चूर वो ऐंठे रहे,
क्यों हाथ पर हाथ धरे तुम बैठे रहे।
कौरवों से ज्यादा पांडवों का दोष है,
निर्जीव वस्तु माना इस बात का रोष है।
दाँव लगाने से पूर्व लज्जा तनिक न आई,
भार्या और वस्तु का भान क्षणिक न आई।
सभी मूक सभासदों का नाश चाहिए,
कौरव वंश का समूल विनाश चाहिए।
प्रण है, केश मेरे तब तक बंधेंगे नहीं,
कौरवों के रक्त से जब तक धुलेंगे नहीं।
धरती पर सभी स्त्रियों का सम्मान चाहिए,
भारत भूमि पर महाभारत का ज्ञान चाहिए।
देवेश साखरे ‘देव’
लगातार अपडेट रहने के लिए सावन से फ़ेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम, पिन्टरेस्ट पर जुड़े|
यदि आपको सावन पर किसी भी प्रकार की समस्या आती है तो हमें हमारे फ़ेसबुक पेज पर सूचित करें|
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - June 12, 2020, 12:22 pm
सुन्दर रचना
देवेश साखरे 'देव' - June 13, 2020, 5:40 pm
धन्यवाद
Manoj Shastri - June 12, 2020, 12:27 pm
सुन्दर
देवेश साखरे 'देव' - June 13, 2020, 5:41 pm
धन्यवाद
Prakash Bhagat - June 12, 2020, 6:12 pm
👌👌👌
देवेश साखरे 'देव' - June 13, 2020, 5:41 pm
Thanks
महेश गुप्ता जौनपुरी - June 14, 2020, 7:42 pm
वाह
देवेश साखरे 'देव' - June 15, 2020, 1:44 pm
धन्यवाद
Pragya Shukla - June 18, 2020, 9:02 pm
👌
Abhishek kumar - July 11, 2020, 12:14 am
👏👏