नदी कहानी
कल-कल बहती नदिया कहलाती हूँ मैं,
पृथ्वी के हर एक जीव को महकाती हूँ मैं,
जोड़ देती हूँ जिस पल दो किनारों के तट,
लोगों के लिए फिर तटिनी बन जाती हूँ मैं,
सर- सर चलती सबकी नज़रों से गुजर के,
सुरों सी सरल सहज सरिता बन जाती हूँ मैं,
सबकी प्यास बुझाती गहरे राज़ छुपाती हूँ,
खुद प्यासी रहके सागर से मिल जाती हूँ मैं,
धरती पर मैं रहती और हरियाली फैलती हूँ,
चीर पर्वतों का सीना रौब बड़ा दिखाती हूँ मैं।।
राही अंजाना
लगातार अपडेट रहने के लिए सावन से फ़ेसबुक, ट्विटर, इन्स्टाग्राम, पिन्टरेस्ट पर जुड़े|
यदि आपको सावन पर किसी भी प्रकार की समस्या आती है तो हमें हमारे फ़ेसबुक पेज पर सूचित करें|
NIMISHA SINGHAL - November 8, 2019, 3:49 pm
Bhut khub
राही अंजाना - November 8, 2019, 5:57 pm
धन्यवाद
Poonam singh - November 8, 2019, 4:03 pm
Nice
Poonam singh - November 8, 2019, 4:04 pm
Nice
nitu kandera - November 8, 2019, 4:35 pm
Wah
राही अंजाना - November 8, 2019, 9:52 pm
Thanks
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - November 8, 2019, 8:49 pm
Nice
राही अंजाना - November 8, 2019, 9:52 pm
Thanks
देवेश साखरे 'देव' - November 9, 2019, 9:49 pm
वाह
राही अंजाना - November 9, 2019, 10:02 pm
धन्यवास
Neha - November 10, 2019, 2:30 pm
वाह
राही अंजाना - November 10, 2019, 6:57 pm
Thanks
Abhishek kumar - November 24, 2019, 2:13 pm
सुन्दर
Pragya Shukla - February 29, 2020, 6:00 pm
Nyc