नुक्कड़ पर
आज गलियां कुछ सूनी सी है ,
पथिक कम जाते हैं.
गलियों के नुक्कड़ पर
बैठा मैं कुछ सोचता हूँ .
पर क्या क्या जीवन भी पथिक है ,
कभी रुकता कभी चलता है
लेकिन आज उदासी क्यों है ,
लोग डरे सहमे से हैं ,
कारन जान नहीं पाता हूँ ,
कुछ लोगो के नजदीक जाता हूँ,
जो चर्चा कर रहें है किसी बारे में ,
पूछता हुँ चलकर क्या है ,
जाता हूँ तो चुप हो जाते है सब …
…atr
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Nice yaar
thank u bhai….
kisi nukkad par hum bhi milenge kahin 🙂
haha .. ha bhai jarur ..always nice to read ur cmnts .. 🙂
…alway nice to read your poems
bahut bahut aabhar dost ..
Log aksar nukkad par hi milte he….kabhi kuch kahte bhi he..kabhi chup bhi ho jaate he…nukkad hi ahsaaso ka bazaar hota he 🙂
hehe .. correct .. thank u
बहुत खूब