पिया कहल चोरन
शिव गिरिजा संग आए घूमने
पृथ्वी लोक में एक बार।
कहीं पे देखा झगड़ा -झंझट
और कहीं पे देखा प्यार।।
पति -पत्नी की जोड़ी कोई
झगड़ रहे थे आपस में।
छींटाकसी और गालियों से
माहौल गरम था आपस में।।
सुन गिरिजा के मन में आया
क्यों न पूछूँ महादेव से।
पति से गाली सुनकर भी
कोई कैसे रहती प्रेम से।।
उऽऽमा तुम्हें क्या लेना इससे
फिर कभी बतलाऊँगा मैं।
घूम-घाम घर आकर गिरिजे
ले आओ कुछ खाऊँगा मैं।।
क्या महादेव आप भी
भांग रोज हीं खाते हो।
व्यंजन बहुत बने दुनिया में
बस मुझसे भांग पिसवाते हो।।
कुछ बाग लगाओ
कुछ साग लगाओ
मेरे घर में भी स्वामी अन -धन का भंडार हो ।
करूँ रसोई अपने हाथों खुशियाँ बेशुमार हो।।
करुँगा खेती तेरे करके अब तो भांग खिला दो।
अमर सुधा है तेरे हाथ में बस एक घूंट पिला दो।।
बाग लगाया साग लगाया शिवगिरिजा ने साथ में।
मेहनत और रक्षा वो करते सदा दिन और रात में।।
बात एक दिन हो गई ऐसी भोलेनाथ थे दूर कहीं।
साग तोड़ने लगी पार्वती होके अकेली तभी वहीं।।
दूर राह से चिल्लाए तब महादेव जी जोर से।
कौन चोरनी मेरे खेत में साग चुराए भोर से।।
खुशी के मारे पागल होके नाच रही थी पार्वती।
‘विनयचंद ‘की मैया मस्त हो गा रही थी पार्वती।।
कहाँ राखूँ डलिया
कहाँ राखूँ साग।
पिया कहल चोरनी
धन्य मोर भाग।।
कुछ साग लगाओ
कुछ बाग लगाओ….
अमर सुधा है बस तेरे हाथ में एक घूंट पिला दो…
👌✍✍✍✍❤
धन्यवाद
वाह ,भाई जी बहुत सुन्दर … शिव पार्वती के दर्शन ही करवा दिए।
आनन्द आ गया भाई जी ,इस सुन्दर रचना की बहुत बहुत बधाई ।
लेखनी को सादर प्रणाम ।
शुक्रिया बहिन
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, माँ पार्वती और महादेव की लीला का वर्णन कर अध्यात्म रस में सरोबार कर दिया आपने शास्त्री जी। जय हो
जय शिव भोले
बहुत सुंदर, जय भोले की
धन्यवाद
ऐसे भजन दादी सुनाया करती थीं भाव विभोर कर दिया आपने
धन्यवाद हृदय तल से
बहुत ही सुंदर रचना
शुक्रिया मोहनजी
धन्यवाद