पूस की रात
हॉय पूस की रात,
तू कितना दर्द देता है।
वो मुझसे दूर क्या हुई,
उसके संग गुजरा हर लम्हा याद आता है।।
हॉय पूस की रात,
तू कितना दर्द देता है।
मैं उसका मन था,
वो मेरे मन से जुड़ती थी।
कैसे छोड़ गयी मुझको,
जो अकेले पन से डरती थी।।
चन्दा की तरह अब सफर है अकेला,एकाकी मन रोता है।।
हॉय पूस की रात,
तू कितना दर्द देता है।
सुन्दर
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