फिर एक शायर तैयार हो रहा था
वो हंस रही थी मुझ पर
मेरा कत्ल हो रहा था।
इश्क का जारी फतवा
सरेआम हो रहा था।
आगोश में जब अपने
भर लेना उसको चाहा।
वो हर जगह थी दाखिल
नज़दीक हो रही थी।
अजनबी थी कल जो
अज़ीज़ हो रही थी
बिना इजाजत दिल के
क़रीब हो रही थी।
कायल वो कर रही थी
घायल वो कर रही थी।
निस्बत नहीं कुछ मुझसे
फिर भी
मदहोश कर रही थी।
आजमाइश पे कसा जो
खरी उतर रही थी
जुस्तजू क्या कर ली!
खरीदार बन रही थी।
गुमान आ रहा था
अरमान छा रहा था।
मासूमियत पे उसकी
मुझे प्यार आ रहा था।
उरियां था दिल जो मेरा
गुलज़ार हो रहा था।
चाहत में इस दिल की
गिरफ्तार हो रहा था।
फिर एक शायर आज
तैयार हो रहा था।
दिल के हाथों
लाचार हो रहा था।
कलम चलाने को
बेकरार हो रहा था।
निमिषा सिंघल
Nice
Thank you
Thank you
Kya baat!
❤️
सुन्दर रचना
सुन्दर
🙏 thank you
बहुत सुन्दर रचना।
वाओ