माँ मेरी

संघर्षों में जीवन की तू परिभाषा कहलाती है,

रंग बिरंगी तितली सी तू इधर उधर मंडराती है,

खुद को पल- पल उलझा कर तू हर मुश्किल सुलझाती है,

खुली हवा में खोल के बाहें तू मन ही मन मुस्काती है,

आँखे बड़ी दिखाकर तू जब खुद बच्ची बन जाती है,

मेरे ख़्वाबों को वहम नहीं तू लक्ष्य सही दिखलाती है।।

जो भी मिले किरदार निभा कर दृष्टि में सबकी आती है,

बस एक माँ ही है जो हर दिल की पूरी दुनियाँ कहलाती है।।

राही (अंजाना)

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Responses

  1. बहुत ही सुन्दर आपके द्वारा रचित कविता लाजवाब बेहतरीन बहुत ही उम्दा भाई जी

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