माँ
माँ: जीवन की पहली शिक्षिका
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जीवन की पहली गुरु, मार्गदर्शिका कहाती है
हर एक सीख,सहज लब्जों में सिखाती है ।।
धरा पे आँखे खुली,माँ से हुआ सामना
जन्मों जन्म से अधूरी,पूर्ण हुई कामना
घर परिवार से,हरेक रिश्तेदार से पहचान कराती है ।
हर एक सीख सहज लब्जों में सिखाती है ।।
हमारी गलतियाँ बता,आइना दिखाती वो
बिगड़े को संभालने की,कला समझाती वो
सबकी अहमियत बातों-बातो में सिखाती है ।
हर एक सीख सहज लब्जों में सिखाती है ।।
छोटा हो या बड़ा ,कम नहीं आकना
हर एक जीत के लिए करो तन मन से साधना
हर कदम पे सही रास्ता दिखाती है ।
हर एक सीख सहज लब्जों में सिखाती है ।।
समय कितना भी हो बुरा,हिम्मत न हारना
चाहे मुसीबत आए,डट के करो सामना
हर एक चुनौती का ,सामना करना सिखाती है ।
हर एक सीख सहज लब्जों में सिखाती है ।।
माँ तेरी ममता का, अहसास है हमें
भूल ना पाते तुझे,खलता प्रवास हमें
स्नेह त्याग की मूरत,देती आशीष हमें
भला हो या बुरा,साथ निभाती है ।
हर एक सीख,सहज लब्जों में सिखाती है ।।
सुमन आर्या
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माँ की सत्य परिभाषा
कवि की उत्तम भावनाओं को अभिव्यक्त करता है
सादर आभार
Nice
सादर आभार
मां है तो हम सब हैं
सादर आभार
बहुत सुंदर भाव
सादर आभार प्रतीमाजी