मुक्तक

हकिकत को पहचाने का तजुर्बा है,
झूठ को ठुकराने का हौसला है ।
सोच विचार से निकलता है मार्ग,
धूर्त मक्कार सदैव फिसलता है।।

✍महेश गुप्ता जौनपुरी

Related Articles

कविता : हौसला

हौसला निशीथ में व्योम का विस्तार है हौसला विहान में बाल रवि का भास है नाउम्मीदी में है हौसला खिलती हुई एक कली हौसला ही…

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

Soch

ये सोच ही है जो जुबान से शब्दों के रूप में कही जाती है ये सोच ही है जो इंसान को एक दूसरे से अलग…

Responses

+

New Report

Close