मुक्तक

खोल यादों की पोटली सोच विचार कर रहें,
मानव अपने कर्मों पर गहन विचार कर रहें।
कैसी ये मुफलिसी है छायी मेरे चेहरे पर,
अपने आप को ढुंढ कर अपने आप में ही खोए रहें।।

✍महेश गुप्ता जौनपुरी

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