मै और तुम

तुम भी ना
एक राग बन चुके हो
जो बजता रहता है ….
रेडियो सा
मेरे हृदय के सितार से।
आनंदित करता रहता है मेरी
सात तालों से बंद
हृदय कोठरी को।
कभी तुम सुगंधित पान
से लगते हो
जिसका स्वाद ,सुगंध
मन को तरोताजा
चिरयुवा सा रखता है।
और कभी तुम
किसी भंवरे के समान
महसूस होते हो।
जो दिन भर कान में गुनगुन –
गुनगुन करके
मुझसे अपने हृदय की हर एक बात कहना चाहता है।
और कभी तुम
सिरफिरे आशिक के सामान लगते हो
जो अपने दिल में मुझे कैद करके
चाबियां भी सब अपने पास ही रखता हो
जब मन चाहे
चले आते हो….चाबीयां लेकर ।
ना दिन देखते हो ना रात।
पता नहीं और क्या क्या हो तुम?
चलो छोड़ो
तुमसे दामन छुड़ा ही लेते हैं
पर कैसे?
रूह ही तुम हो
रूह को निकाले कैसे?
रूह को निकाल दे
तो जिएं कैसे?
मतलब
तुम पीछा नहीं छोड़ोगे!
निमिषा सिंघल
Nice
🌺🌺
Good
Thank you
Touching
🌺🌺
बहुत खूब
🙏
सुंदर