लड़की हूं!
लड़की हूं लड़की होने का,
दस्तूर निभा रही हूं।
न जता सकी उस प्यार को,
फिर भी निभा रही हूं।
शौक रखती थी कुछ पाने का,
अब उसे दबा रही हूं।
कभी कोई सोचता नहीं,
कभी कोई पूछता नहीं ,
तुम्हारी खुशी क्या है?
बस मौन रहकर,
सहमति जता रही हूं।
कर्तव्य है मेरा सेवा करना!
इसलिए बंदिनी बन,
जीवन निभा रही हूं।
ना चाहते हुए भी अपनाए हैं,
चाहे-अनचाहे रिश्तें,
फिर भी मुस्कुरा रही हूं ।
जहां बो सकती थी स्वार्थ के बीज,
वहां खुद ही काटे बिछा रही हूं ।
अब निस्वार्थ होकर मैं,
सिर्फ खुशियां लुटा रही हूं।
मैं लड़की हूं लड़की होने का,
दस्तूर निभा रही हूं।
सही है..
🙏🙏
Nice
Thank you
बहुत खूब
Thank you
Nice lines
धन्यवाद जी
यथार्थ चित्रण…. बहुत सुंदर रचना
बहुत बहुत आभार 🙏
bahut achha..!
Thank you