वख्त
वख्त जो नहीं दिया किसी ने
उसे छीनना कैसा
उसे मांगना कैसा
छिनोगे तो सिर्फ २ दिन का ही सुख पाओगे
और मांगोगे तो लाचार नज़र आओगे
छोड़ दो इसे भी वख्त के हाल पर
जो जान कर सो गया , उसे जगाना कैसा
वख्त जो किसी के साथ गुज़ार आये
उसका पछतावा कैसा
उसका भुलावा कैसा
पछता के भी बीते कल को न बदल पाओगे
पर भूल कर उसे ज़रूर एक नया कल लिख पाओगे
तोड़ लो बीते कल की जंजीरों को
ये सर्पलाता है , इनसे लिपट कर, जीना कैसा
वख्त तो एक दान है
दिल से दिया तो पुण्य
और गिना दिया तो सब पुण्य बेकार है
जिसको मिला वो निर्धन, जिसने दिया वो धनवान है
और जो दे दिया किसी को, उसका गिनाना कैसा ……..
अर्चना की रचना “सिर्फ लफ्ज़ नहीं एहसास”
Nice
Wah kya khub
Nice
बेहद रूहानी
बहुत बहुत आभार आप सब का
nice
Nice one
Nice
Nyc