वृक्ष लगाओ खुद को बचाओ
धरती पनपाती वृक्षों को,
वृक्षों पर बसेरा जीवो का।
ये वृक्ष नहीं ये मुखिया हैं,
धरती माता का प्यार यहां।
कितना सुंदर ये घर बगिया,
रहते सुंदर परिवार यहां।
कुछ जा रहते कोटर के अंदर
कुछ सो जाते पत्तों में छुप कर।
कुछ करते बसेरा डालो पर,
कुछ रहते बिल , घोसलों में।
हंसते- खेलते परिवार यहां,
उजले- उजले घर द्वार यहां।
थोड़ा सा टुकड़ा धरती का,
पनपा जिसमें कुनबा कितना।
एक तरफ यहां इंसान देखो!
धरती को घेरे जाता है।
एक -एक इंसान यहां रहने को,
कितने बीघा खा जाता है।
लालसा तब भी मिट्ती ही नहीं,
पेड़ों को काटे जाता है।
एक पेड़ पर बसते कुनबे कई,
बस यही बात भूल जाता है।
कितनों को बेघर कर कर के
अपना आशियां बनाता है।
सोचा है कभी???
एक पेड़ जरा सा ना काटो,
कितनों को घर मिल जाता है।
तुमने तो जंगल काट दिए,
बेघर सब जीव जंतु कर दिए।
फिर जीव शहर की ओर मुड़े,
फिर आकर तुम्हारे घरों में घुसे।
तब हाहाकार मचा ते हो
बंदर घुस आए चिल्लाते हो।
जब घर से उनको बेघर किया,
वो अपना हिस्सा मांगेंगे।
जंगल में खाना बचा नहीं,
तो शहर की ओर ही भागेंगे।
अब भी समझो!!
वृक्ष काटो कम
लगाओ अधिक।
इसमें अधिक तुम्हारा क्या जाता ??
धरती की तुम क्या सोचोगे!
वृक्ष लगाओ खुद को बचाओ।
निमिषा सिंघल
सुन्दर रचना सही बात 👏👏
💞💞💞💞💞
Nice
Thanks dear
वेलकम
Good
🌺🌺🌺🌺
Bahut khoob
🙏🙏🙏🙏
Nice
Wah
👍👍