शहर की चकाचौंध

गाँव की जमीं बेच दी,
पुश्तैनी मकां बेच दिया।
शहर की चकाचौंध खरीदी,
खुशियों का जहां बेच दिया।

मिट्टी की सौंधी महक,
चिड़ियों की मधुर चहक।
नीम की ठंडी छाँव,
मिट्टी में सने पाँव।
खेतों को जाती पगडंडीयाँ,
बैलों के गले बंधी घंटीयाँ।
तालाब में गोते लगाना,
चूल्हे में पका खाना।
जमीन पर बिछा आसन,
परिवार के संग भोजन।
मटके का ठंडा पानी,
दादा-दादी की कहानी।
यह मधुर स्मृतियाँ हमने,
ना जाने कहाँ बेच दिया।
शहर की चकाचौंध खरीदी,
खुशियों का जहां बेच दिया।।

दसवें माले पर एक मकां,
न ज़मीं न खुला आसमां।
गाड़ियों का शोरगुल,
जानलेवा धुआँ और धूल।
शहर की भाग दौड़,
आगे जाने की होड़।
ए सी की हवा, फ्रिज का पानी,
कर रही सेहत में परेशानी।
टेबल पर लगा खाना,
फोन पर समय बिताना।
कम्प्यूटर या फोन में मशगूल,
परिवार से बातचीत गये भूल।
इंसानियत, अपनत्व हमने,
ना जाने कहाँ बेच दिया।
शहर की चकाचौंध खरीदी,
खुशियों का जहां बेच दिया।।

देवेश साखरे ‘देव’

Related Articles

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close