शहीद को सलाम

शरहद पर से पापा मेरे फोन किए थे शाम को।
कुछ दिन धीरज रखना बेटा आऊँगा मैं गाम को ।।
पढ़ना लिखना खेल कूद में सदा रहो तुम आगे।
दादा दादी और अम्मा का रखना ध्यान बड़भागे।।
तेरे खातिर ढेर खिलौने लाऊँगा मैं ईनाम को।।
कुछ दिन धीरज रखना बेटा आऊँगा मैं गाम को।।
देख नहीं सकते दादाजी कान न सुनते दादी की।
फिर भी सुनाते हमें कहानी शरहद के शहजादी की।।
अम्मा मेरी पूजा करती सदा आपके नाम को।
जल्दी आना पापा मेरे अपने घर और गाम को।।
ठीक ठाक से रहना पापा अपना ख्याल खुद रखना।
नहीं चाहिए मुझे खिलौने बन्दूक लेकर आ जाना।।
फौजी बनकर मैं भी पापा रक्षा करूँ आवाम को।
हुआ सबेरा घर बाहर मचा तहलका था भारी ।
दौड़ दौड़कर हँसता रोता बालक खोल किवाड़ी।।
ये नादान कैसे समझेगा आखिर इस कोहराम को।
करके फोन और गुमसुम होकर आएगें अब शाम को।।
ताबूत बीच में ओढ़ तिरंगा लेटे हो क्यों पापा।
ये आना भी कैसा आना मना रहे सब स्यापा।।
उठ जाओ और पकड़ अंगुरिया मुझे घुमाओ गाम को।
‘विनयचंद ‘के अश्रुपुष्प संग स्वीकारो एक सलाम को।।
जल्दी आना पापा मेरे अपने घर और गाम को।।

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Responses

      1. पापा मेरे फोन किये थे सर ये कुछ ठीक नहीं लगा।
        गाम तो समझता हूँ

  1. शहीद के घर की स्थिति को बयान करते हुए बहुत ही दुखद रचना करुण रस से परिपूर्ण

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