शाम-सी
जो भी मेरी कविता पढ़ता था
पूछता था एक मुस्कान- सी आती थी चेहरे पर
आज उन्होंने भी पढ़ा:-
और पूछा:-‘ किसके लिये लिखती हो?
मेरा ज़िस्म ऊपर से नीचे तक
कांप उठा…
ज़ज्बात जागे पर जुबां
खामोश रही…
कोई जवाब सूझा ही नहीं
ठगा सा महसूस हुआ
आया समझ
कितनी दूरियाँ हैं
हमारे दर्मियां…
वाह
थैंक्स
Awesome
धन्यवाद