” सम्भाल ले ऐ – ख़ुदा “
सम्भाल ले ऐ – ख़ुदा , एक लम्हे के लिए मुझे….
अब मैं हार रहा हूँ …..
तू ही बता मेरे साहिब , मैं क्यों ये जिंदगी तन्हा गुजार रहा हूँ …
तूने साज़ किया चेहरे पर , मुस्कराहट का ….
लेकिन मैं क्यों , मायूसी स्वीकार रहा हूँ …..
जिल्ले – सुभानी कहता हैँ ये जग मुझे , अल्फाज़ो का ….।
फिर मैं क्यों ख़ुद को ख़ामोशी में उतार रहा हूँ ….
इक रोज़ मालूम हुआ , मयख़ाने में मय बाँट लेती है रंज….
मैं , ये कड़वा सच भी नकार रहा हूँ …..
जब देखता हूँ माँ – बाप की नजरों में , तू दिखाई दे ….
लेकिन कुछ रोज़ से , बनता जा काफ़िर रहा हूँ …
अब तो कुछ और आब बढ़ा दे चेहरे की रौनक …
क्योंकि हर दफ़ा महफ़िल – ए – रंज में , मैं उजागर रहा हूँ …
अधूरी साँसे हैं , ख्वाईश एक रुख़ – ए – रोशन से बेइंतहा इश्क़ पाने की….
लेकिन मैं क्यों , मन ही मन , मन को मार रहा हूँ ….
उठ चूका हैं , नहीं उठना था , जो सैलाब दिल में ” पंकजोम प्रेम “….
क्योंकि लहर – ए – उल्फ़त पर एक मरतबा फिर मैँ लहर रहा हूँ…
Laazbaab aur behatreen…umda
Sukkriyaa pnna bhai.. bus ab sbhi ka pyar yuu hi milta rhe
behtareen ehsaas !!
Behtrin se bhu behtrin ahsas hum apko krwate rhenge… ankit bhai
nice poem
Sukkriya sonia ji
Nice one dear
Bht bht Sukkriyaa sheetal ji…
शानदार प्रस्तुति