सर्दी नहीं जाने वाली
बन्द मुट्ठी में हैं मगर कैद में नहीं आने वाली,
हाथों की लकीरों की नर्मी नहीं जाने वाली,
आलम सर्द है मेरे ज़हन का इस कदर क्या कहूँ,
के ये बुढ़ापे की गर्मी है यूँही नहीं जाने वाली,
जमाकर बैठा हूँ आज मैं भी चौकड़ी यारों के साथ,
अब अकेले रहने से तो ये सर्दी नहीं जाने वाली।।
राही (अंजाना)
congratulations
धन्यवाद आपक
nice
Good