सर्द रातें
ठिठुरती रातों में वो हवाएँ जो सर्द सहता है।
किसे बताएँ मुफ़्लिसी का जो दर्द सहता है।
ज़मीं बिछा आसमां ओढ़ता, पर सर्द रातों में,
तलाशता फटी चादर, जिसपे कर्द रहता है।
पाँव सिकोड़, बचने की कोशिशें लाख की,
पर बच ना सका, हवाएँ जो बेदर्द बहता है।
किसको इनकी परवाह, कौन इनकी सुनता,
देख गुज़र जाते, कौन इन्हें हमदर्द कहता है।
रोने वाला भी कोई नहीं, इनकी मय्यत पर,
खौफनाक शबे-मंज़र, बदन ज़र्द कहता है।
देवेश साखरे ‘देव’
मुफ़्लिसी- गरीबी, कर्द- पैबंद,
शबे-मंज़र- रात का दृश्य, ज़र्द- पीला
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Abhishek kumar - November 27, 2019, 1:16 pm
Good
देवेश साखरे 'देव' - November 27, 2019, 3:13 pm
Thanks
Abhishek kumar - November 27, 2019, 6:41 pm
Welcome sir
Pt, vinay shastri 'vinaychand' - November 27, 2019, 3:21 pm
Nice
देवेश साखरे 'देव' - November 27, 2019, 5:48 pm
Thanks
NIMISHA SINGHAL - November 29, 2019, 7:56 am
Nice
देवेश साखरे 'देव' - November 29, 2019, 12:51 pm
Thanks
nitu kandera - December 2, 2019, 7:53 am
Good
देवेश साखरे 'देव' - December 4, 2019, 9:08 pm
Thanks
Satish Pandey - July 13, 2020, 11:02 am
ठिठुरती रातों में वो हवाएँ जो सर्द सहता है।
वाह वाह