Categories: मुक्तक
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शायरी संग्रह भाग 2 ।।
हमने वहीं लिखा, जो हमने देखा, समझा, जाना, हमपे बीता ।। शायर विकास कुमार 1. खामोश थे, खामोश हैं और खामोश ही रहेंगे तेरी जहां…
मेरा स्वार्थ और उसका समर्पण
मैनें पूछा के फिर कब आओगे, उसने कहा मालूम नहीं एक डर हमेशा रहता है , जब वो कहता है मालूम नहीं चंद घडियॉ ही…
घर और खँडहर
घर और खँडहर ईटों और रिश्तों मैँ गुंध कर मकान पथरों का हो जाता घर ज्यों बालू , सीमेंट और पानी…
मत बर्बाद कर ए मेरे दोस्त नर तन
मत बर्बाद कर ए मेरे दोस्त नर तन बड़े ही जतन से मिले है ये मानुष-जन्म। कर ले दान-धर्म, दीन-दुःखी की सेवा कर । व्यर्थ…
भाई जैसा मेरा दोस्त और उसकी दोस्ती
दोस्तों, फ्रेंड्स तो सबके होते है, मेरे भी है और आपके भी होंगे, परन्तु एक अच्छा और सच्चा मित्र किस्मत वालों को ही मिलता है।…
Nice
Good
Abhishek ji plz comment on my poem Holi 🙏
Thanks
Nice
वाह